हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद द्वारा आरटीआई के दुरुपयोग को कम करने के लिए कार्यशाला का आयोजन
कार्यशाला में राज्य द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों के जन सूचना अधिकारियों (पीआईओ) और अपीलेट अधिकारियों ने भाग लिया।
हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद (एचएसईसी) ने 3 जनवरी, 2023 को पंचकूला में आरटीआई के दुरुपयोग को कम करने के लिए एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। प्रो बृज किशोर कुठियाला, अध्यक्ष, एचएसएचईसी; डॉ. कैलाश चंदर शर्मा, उपाध्यक्ष, एचएसएचईसी; विशेषज्ञ वक्ता श्री अजय जग्गा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय और प्रसिद्ध प्रशासक श्रीमती उर्वशी गुलाटी, पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व राज्य सूचना आयुक्त, हरियाणा ने भाग लेने 15 राज्य द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों के पीआईओ और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को संबोधित किया। प्रारंभिक टिप्पणी में, डॉ. कैलाश चंदर शर्मा, उपाध्यक्ष, एचएसएचईसी ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के लाभों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह नागरिकों को उनके सवालों के जवाब पाने और बेहतर जानकार नागरिकों का निर्माण करने का अधिकार देता है। उन्होंने यह भी कहा कि आरटीआई के चैनल का उपयोग ब्लैकमेलिंग और दुरुपयोग के इरादे से नहीं किया जाना चाहिए और इस बात पर जोर दिया कि आरटीआई अधिनियम की प्रक्रिया पीआईओ और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को अच्छी तरह से समझा लेना चाहिए।
श्री अजय जग्गा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने प्रतिभागियों को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, २००५ का अर्थ, उद्देश्य, महत्वपूर्ण प्रावधान और सर्वोच्च न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय बताते हुए आरटीआई अधिनियम के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि केवल यथार्थ आरटीआई आवेदनों पर ही आगे कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कुछ सामान्य मुद्दों के लिए राज्य सरकार द्वारा मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाई जा सकती है। उन्होंने विभिन्न प्रतिभागियों के सवालों का जवाब भी दिया।
प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने सुझाव रखा के परिषद् में एक समिति गठित की जा सकती है जिसमे पीआईओ ,प्रथम अपीलेट अधिकारियों, सूचना अधिकार कार्यकर्ता, अधिवक्ता शामिल होंगे। यह समिति सूचना अधिकार से संबंधित समस्याओं पर राज्य के विश्वविद्यालयों को सलाह देगी।
श्रीमती उर्वशी गुलाटी, पूर्व मुख्य सचिव एवं पूर्व राज्य सूचना आयुक्त, हरियाणा ने समापन उद्बोधन में सूचना के अधिकार अधिनियम की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह लोकहित और पारदर्शी व जीवंत लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों के बुनियादी नियम सार्वजनिक होने चाहिएं। संस्थाएं जितनी पारदर्शी होंगी उनमे उतने ही कम सूचना के अधिकार से संबंधित मामले आयेंगे और संस्थाओं का इस माध्यम से उत्पीड़न भी कम होगा। उन्होंने कहा कि पीआईओ और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को सूचना के अधिकार अधिनियम के बारे में जागरूकता व जानकारी रखनी चाहिए और मामलों को संभालते समय लोकहित को दृष्टि में रखना चाहिए। अधिनियम में इसके गलत इस्तेमाल से बचने के प्रावधान हैं। उन्होंने ये सुझाव दिया की पीआईओ और प्रथम अपीलेट अधिकारियों को सुझाव व सलाह देने से बचना चाहिए। उनको केवल वही सूचना देनी चाहिए जो की उपलब्ध है और जिस माध्यम में उपलब्ध है। सूचना केवल अभिलेखों पर आधारित होनी चाहिए।
कार्यशाला का समापन प्रो. डी पी वारने, वरिष्ठ शैक्षणिक अन्वेषक एवं नियोजक द्वारा सबके धन्यवाद और राष्ट्रीय गान से हुआ।