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औषधीय एवं सुगन्घित पौधों की वैज्ञानिक खेती के बारे में व्यवसायिक प्रशिक्षण का किया आयोजन

परंपरागत खेती में बदलाव करते हुए फसल विविधीकरण पर जोर देना समय की मांग

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पचंकूला, 8 अक्तूबर- चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र, पंचकूला द्वारा गाँव हंगोला, ब्लॉक रायपुररानी में औषधीय एवं सुगन्घित पौधों की वैज्ञानिक खेती के बारे में व्यवसायिक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।


इस मौके पर केंद्र की इंचार्ज डॉ श्री देवी तल्ला प्रगड़ा ने कहा कि परंपरागत खेती में बदलाव करते हुए फसल विविधीकरण पर जोर देना समय की मांग है।  वर्तमान समय में इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि परंपरागत कृषि पद्धति में बदलाव करके किसानों को औषधीय पौधों की खेती की ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे किसान की आमदनी में भी इजाफा हो सके। उपभोक्ता, बाजार, व्यापार और मार्केट की मांग के अनुरूप फसलों का उत्पादन किया जाना चाहिए ताकि किसान को अधिक से अधिक लाभ हासिल हो सके।  वर्तमान समय में एकल फसल प्रणाली को छोड कर समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाना ही एकमात्र विकल्प है। औषधीय पोधों का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि औषधीय पौधे न केवल अपना औषधीय महत्व रखते हैं बल्कि आय का भी एक जरिया बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे शरीर को निरोगी बनाये रखने में औषधीय पौधों का अत्यधिक महत्व होता है।

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सस्य वैज्ञानिक डॉ वंदना ने बताया कि औषधीय पौधों का महत्व उसमें पाए जाने वाले रसायन के कारण होता है। औषधीय पौधे खांसी एवं वातकाशमन करने, पीलिया, हैजा, फेफड़ा, अण्डकोष, तंत्रिका विकार, दीपन, पाचन, उन्माद, रक्तशोधक, ज्वरनाशक, स्मृति एवं बुद्धि का विकास करने, मधुमेह, मलेरिया एवं बलवर्धक, त्वचा रोगों एवं ज्वर आदि में लाभकारी हैं। औषधीय पौधे जैसे घृत कुमारी, तुलसी, ब्राम्ही, हल्दी, सदाबहार,  शतावर, मुलहटी आदि की वैज्ञानिक खेती करके काफी लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सुगंधित पौधों जैसे लेमन ग्रास, सिट्रोनेला, तुलसी, जिरेनियम पामारोजा/रोशाग्रास के बारे में भी किसानो को जानकारी दी गयी । इस मौके पर कृषि वैज्ञानिक डॉ गुरनाम सिंह औरडॉ राजेश ने भी अपने विचार किसानों के साथ साँझा किये ।