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पंजाब व चंडीगढ़ का निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का समापन पंचकुला

पंचकुला 6 जनवरी, 2020: – 

पंजाब व चंडीगढ़ का निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का समापन पंचकुला

(पंजाब) सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की असीम कृपा से पंजाब व चंडीगढ़ के निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का समापन पंचकुला के सेक्टर -5 स्थित शालीमार ग्राउंड में सम्पन्न हुआ।

पंजाब व चंडीगढ़ का निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का समापन पंचकुला

            इस अवसर पर सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सभी निरंकारी युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि – सत्संग, सेवा और सुमिरण यह केवल 3 शब्द बनकर न रह जाये। इसे हम हमारी रोज़मर्रा कि जिंदगी में ऐसे बसा ले कि हमारा हर पल आनन्द की अवस्था में गुजरे। हम सब इस एक निरंकार प्रभु परमात्मा के हो रहे हैं। हमारा ध्येय केवल इस निराकार प्रभु परमात्मा से आत्मसार हो जाना ही हो जिससे ब्रह्मज्ञान हमारे मन में इस प्रकार से बस जाये कि वह हमारी सोच व जीवन में भी उतर सके।

पंजाब व चंडीगढ़ का निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का समापन पंचकुला

            सद्गुरु माता जी ने आगे फरमाया कि इन तीन दिनों में जिसमें पहले दिन खेल व अन्य दो दिन यूथ सिम्पोजियम के माध्यम से जहां पर सभी जन एकत्रित हुए और अपनी-अपनी कलाओं का प्रदर्शन किया जिससे यहीं भाव निकलता है कि हमने व्यक्तिगत तौर पर ही श्रेष्ठ नहीं बनना, अपितु अपने बुजुर्गों के मार्गदर्शन व उनकी शिक्षाओं का सानिध्य लेकर जीवन को जीना है।

            निरंकारी यूथ सिम्पोजियम के दूसरे दिन तीन तत्वों वायु, आकाश व जीव को विभिन्न कलाओं व संवाद के सहयोग से दर्शाया गया जिसमें बाबा हरदेव सिंह जी के विचार ‘‘नफरत करने वाले से ईष्या न करें, बल्कि जिनके लिए भी नफरत के भाव मन में पनपते हैं, उनकी सूची बनाकर उसे समाप्त करने पर बल देना है।

            यह विचार भी उभरकर आया कि आज पदार्थों की अंधी दौड़ में हमारी जीवन यात्रा प्रभु परमात्मा  की ओर जाने की बजाए सांसारिक  पदार्थों की और जा रही  है।

 अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में कहीं हम प्रभु भक्ति से दूर न हो जाएं, जिसके लिए हमें यह मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है। दुनियावी कार्य करते हुए भी प्रभु सुमिरण में एकमिक होकर सत्संग, सेवा व सुमिरण को प्राथमिकता दें। 

गाँधी जी के सिद्धांतों का भी उल्लेख हुआ जिसमें ‘‘बुरा न देखें, बुरा न कहें व बुरा न सुने‘‘ पर ज़िक्र हुआ और इन सबमें सबसे अधिक ज़ोर दिया कि ‘‘बुरा न सोचें।“ जब सोच अच्छी होगी तो ऐसा कोई कर्म ही नहीं हो पायेगा।

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