147 बुजुर्ग एवं दिव्यांगों ने भरा 12डी फार्म, रिटर्निंग अधिकारी घर-घर जाकर डलवाएंगे वोट - डा. यश गर्ग

रूरल इलेक्ट्रीफिकेषन कारपोरेशन लिमिटेड,सेक्टर-2,पंचकूला में ’’हर दिन हर घर आयुर्वेद’’ पर व्याख्यान का किया आयोजन

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पंचकूला, 18 अक्तूबर- जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डा0 दिलीप कुमार मिश्रा के मार्गदर्शन में ’’हर दिन हर घर आयुर्वेद’’ विषय से सम्बंधित कार्यक्रम हरियाणा के हर जिले में करवाये जा रहे है। इसी कड़ी में आज रूरल इलेक्ट्रीफिकेषन कारपोरेशन लिमिटेड,सेक्टर-2,पंचकूला में ’’हर दिन हर घर आयुर्वेद’’ पर व्याख्यान दिया गया।


मुख्य महाप्रबंधक/वरिष्ठ मुख्य प्रोग्राम प्रबंधक श्री अरूण कुमार त्यागी की अध्यक्षता में डा0 सान्त्वना शर्मा, ए0एम0ओ0 द्वारा आयोजित इस व्याख्यान में आयुर्वेद के अनुसार आहार के बारे में जानकारी दी गई।
जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डा0 दिलीप कुमार मिश्रा ने बताया कि आयुष मंत्रालय व आयुष विभाग हरियाणा द्वारा 7 वां आयुर्वेद दिवस 23 अक्तूबर 2022 को मनाया जा रहा है। आयुष मंत्रालय द्वारा इस बार का विषय ’’हर दिन हर घर आयुर्वेद’’ रखा गया है। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के तहत ई-रिक्शा के माध्यम से जनसाधारण को शहर के मुख्य स्थानों पर जा कर ’’हर दिन हर घर आयुर्वेद’’ के बारे में जागरूक किया जा रहा है।

आहार पर निर्भर स्वास्थ्य

पंचकूला अक्टूबर 18: आहार जीवन के निर्वाह के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक है । आयुर्वेद में इसे जीवन के त्रयोपस्तंभ अर्थात आहार, निद्राऔर ब्रह्मचर्य में सबसे प्रमुख स्तंभ के रूप में वर्णित किया गया है। रंग, ओजस, वृद्धि और विकास, इंद्रियां, खुशी, आवाज की स्पष्टता, चमक, आनंद, धातु, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की वृद्धिय शक्ति का आधार, जीवन की सभी गतिविधियाँ व्यक्ति के भोजन पर निर्भर है। का’यपाचार्य द्वारा आहार को महाभेषज कहा गया है, लेकिन यह आहार व्यक्ति की अपनी प्रकृति के अनुसार होना चाहिए। एक प्रकार की प्रकृति के व्यक्ति के लिए हितकर आहार दूसरी प्रकृति के व्यक्ति के लिए अहितकर हो सकता है । भोजन के बारे में स्वदेशी अवधारणा, समकालीन आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान के बुनियादी सिद्धांतों में बहुत समानता है। समकालीन आधुनिक खाद्य विज्ञान प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा से प्राप्त पोषण मूल्य विटामिन, खनिज के आधार पर भोजन का वर्णन करता है, जबकि पारंपरिक प्रणाली जैसे आयुर्वेद डायटेटिक्स भोजन के अंतर्निहित गुणों पर अधिक जोर देंता है। भारत के पारंपरिक खाद्य पदार्थ की तैयारी में आयुष डायटेटिक्स का पालन किया जाता है। भारत में देश के विभिन्न हिस्सों में विविध खाद्य प्रथाओं की एक बहुत समृद्ध परंपरा है। हमारे स्वास्थ्य और पोषण के लिए खाने की पारंपरिक प्रणाली फायदेमंद है। पौष्टिक भोजन का सेवन और उसका उचित पाचन, व्यक्ति के वृद्धि, विकास और पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भोजन के लाभ तभी प्राप्त किए जा सकते हैं जब इसे विवेकपूर्ण तरीके से, किसी व्यक्ति के पाचन,व्यक्ति के लिए अनुकूलित जलवायु, आवास की स्थिति और स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार लिया जाए। भोजन से इष्टतम लाभ प्राप्त करने के लिए आम तौर पर निम्नलिखित नियम का पालन किया जा सकता है। अपने स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें और भोजन को सोच समझ कर खाएं। भोजन लेते समय मनोवैज्ञानिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है, प्रसन्नचित्त मन से खाएं। बिना इच्छा के नहीं खाना , बिना इच्छा के लिया हुआ भोजन, यहाँ तक कि पौष्टिक भोजन सही मात्रा में लेने से व्यक्ति पचा नहीं पाता है । इसके परिणाम से  अपच, एनोरेक्सिया, उल्टी और पेट का दर्द हो सकता है। भोजन के स्वाद का आनंद लें, स्वादिष्ट भोजन मन की प्रसन्नता शक्ति, पोषण, उत्साह, संतुष्टि प्रदान करता है। ताजा और गर्म भोजन करें, गर्म और ताजा खाना स्वादिष्ट होता है और तेजी से पाचन, उचित अवशोषण में मददगार हो सकता है। भोजन को दोबारा गर्म करने और  बार-बार गर्म करने से बचना चाहिए ताकि पोषण और भोजन के अन्य गुण को संरक्षित किया जा सके। बार-बार नहीं खाना चाहिए । इसी प्रकार भोजन भूख लगने पर और निश्चित समय पर ही करें। दिनभर थोड़ा-थोड़ा खाएं। बार-बार खाने से बदहजमी, बदन दर्द, मेटाबोलिक रोग आदि से कष्ट होता है। भोजन का सही समय-  प्रातः काल में भरपूर भोजन करना चाहिए। रात से लेकर सुबह तक 10-12 घंटे का उपवास हो जाता है, इसलिए अग्नि काफी प्रबल हो जाती है। जिससे भारी भोज्यपदार्थों को भी पचाया जा सकता है। इसलिए प्रातःकाल पर्याप्त पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। दोपहर का भोजन सुबह के नाश्ते की तुलना में हल्का होना चाहिए। उचित रात्रिभोज- रात का खाना दोपहर के भोजन से हल्का होना चाहिए और कम से कम सोने से तीन घंटे पहले लेना चाहिए । सूर्य के ढलने के साथ हमारे शरीर की चय-अपचय की प्रक्रिया भी शांत होने लगती है।  हमारी पाचक अग्नि कमजोर होने लगती है। खाद्य सामग्रीरू दैनिक पोषण की भरपाई करने के लिए नियमित रूप से अनाज (साबुत अनाज, लाल और पुराने चावल) दालें, डेयरी उत्पाद, फल, सब्जियां  लेना चाहिए। मौसमी और स्थानीय उपलब्धता और रख-रखाव के अनुसार भोजन का चयन करें। पारंपरिक प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए और भोजन के किसी भी अनावश्यक संयोजन से बचें। भोजन में 6 रस शामिल होने चाहिए। ये 6 रस हैं- मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), अम्ल (खट्टा), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कषाय (कसैला)। शरीर की प्रकृति के अनुसार ही भोजन करना चाहिए। इससे शरीर में पोषक तत्त्वों का असंतुलन नहीं होता।

मौसमी ध्यान-
सर्दी और बरसात के मौसम में ठंडे और जमे हुए भोजन से परहेज सबसे अच्छा है,  लेकिन मसाले फायदेमंद होते हैं और इन्हें आहार में शामिल करना चाहिए।गर्मी के दिनों में शीतल गुणों वाला भोजन और तरल पदार्थ बेहतर होते हैं। बरसात के मौसम में भोजन का दूषित होना आम बात है और इसलिए उचित देखभाल और स्वच्छ भोजन को सुरक्षित रखकर लिया जाना चाहिए। दही का वर्षा ऋतु में सेवन न करें- वर्षा ऋतु को पित्त का संचय काल माना गया है। अम्ल गुण वाला होने के कारण से दही पित्त को बढ़ाता है। इसलिए वर्षा ऋतु में दही का सेवन करने से पित्तज रोग यानी चर्मरोग, एसिडिटी, शरीर में उष्णता बढ़ना आदि होने की संभावना बढ़ जाएगी। रात में कभी भी दही का सेवन नहीं किया जाना चाहिए। दही स्रोतों में रूकावट पैदा करने वाला है। स्रोतों के बाधित होने से आम का संचय होता है जिससे भूख घटना, जुकाम, खांसी, मोटापा, मधुमेह आदि होने की संभावना बढ़ जाती है।

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