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पारस अस्पताल पंचकूला के डाक्टरों ने दिमाग की नस फटने के केस में मरीज की जान बचाई

दिमाग का दौरा उम्र से पहले बनता है मौत कारण : डा. अनिल ढींगरा

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पंचकूला, 15 जुलाई ( ): सुपर स्पैशलिटी अस्पताल पंचकूला के दिमाग के रोगों संबंधी विभाग के डाक्टरों की टीम ने दिमाग की नस फटने तथा नस फूलने जैसे रोगों प्रति जागरूकता पैदा करने के मकसद से पत्रकारों के साथ बातचीत की। इस अवसर पर न्यूरो सर्जरी के एसोसिएट डायरेक्टर डा. अनिल ढींगरा तथा न्यूरोरेडियोलॉजी के सीनियर कंस्लटेंट तथा प्रोफैसर विवेक गुप्ता ने संबोधन किया।

पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए डा. विवेक गुप्ता ने कहा कि दिमाग का दौरा (ब्रेन स्ट्रोक) तथा नस फूलने की समस्या अब भारत में आम बीमारी के तरह में उभर रही है तथा हर साल देश में डेढ़ से दो लाख लोग इस बीमारी से पीडि़त होते हैं। उन्होंने कहा कि यह बीमारी सबसे अधिक जानलेवा है। ऐसे मरीजों की गिनती इससे भी अधिक हो सकती है, क्योंकि ज्यादातर लोग इलाज के लिए अस्पतालों में नहीं पहुंचते। डा. गुप्ता ने कहा कि अब नई तकनीक से इसका इलाज संभव है। पारस अस्पताल में कोआइल एंड फलो डाइवर्टज नामक यह इलाज सुविधा उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि देश में सिर्फ 50 अस्पतालों में में इस तकनीक से इलाज किया जाता है।

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डा. विवेक गुप्ता ने बताया कि उनकी टीम ने इस तकनीक से एक 41 वर्षीय पुरूष मरीज का इलाज किया है, जिसको बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था। उसके दिमाग की नस फटने से दिमाग के अंदर बहुत सारा खून बह गया था। अस्पताल में उसका इलाज इस नई तकनीक से किया गया तथा वह 8 दिनों में ठीक हो गया तथा चलना-फिरना शुरू कर दिया। इलाज के बाद उसको अधरंग या लकवे वगैरह की कोई शिकायत नहीं थी। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में पारस अस्पताल एकमात्र ऐसा अस्पताल है जहां दिमागी दौरे के इलाज के लिए यह आधुनिक सुविधा उपलब्ध है।

डा. अनिल ढींगरा ने इस मौके संबोधन करते हुए कहा कि दिमागी दौरा तथा नस फूलने की समस्या आम तौर पर रक्तचाप (बल्ड प्रैशर) बढऩे से होती है, क्योंकि दिमाग के अंदर की नस रक्त के प्रेशर से कमजोर जगह से फूल जाती है तथा कई बार फट जाती है। इस कारण एक तिहाई मरीजों की मौत हो जाती है तथा अन्यों को अधरंग या लकवा हो जाता है, जिस कारण वह अपाहिज हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि समय पर मरीज का इलाज शुरू न हो तो बहुत नुकसान हो जाता है।

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