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कृषि विज्ञानं केंद्र पंचकूला द्वारा गांव बडोना कलां ब्लॉक रायपुररानी में फसल अवशेष प्रबंधन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया

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पंचकूला, 13 अक्तूबर- चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अधीन कृषि विज्ञानं केंद्र पंचकूला द्वारा गांव बडोना कलां ब्लॉक रायपुररानी में फसल अवशेष प्रबंधन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस कार्यकर्म की अध्यक्षता कृषि विज्ञानं केंद्र की समनव्यक डॉ श्री देवी तलपरागड्डा ने की। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा फसल की कटाई के बाद खेत में जो पत्ते, डंठल (तना), जड़ और अन्य भाग बच जाता है वो फसल अवशेष की श्रेणी में आता है। फसल अवशेषों क लिए विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक उपयोग विकास के विभिन्न चरणों में हैं। फसल के अवशेष फाइबर बोर्ड, कागज, तरल ईंधन और अन्य जैसे मिश्रित उत्पादों के लिए एक फीड स्टॉक हो सकते हैं। फसल अवशेषों के लाभकारी प्रबंधन के लिए किसानों के लिए कई प्रबंधन विकल्प उपलब्ध हैं जैसे पशुधन चारा, मशरूम की खेती, मिट्टी में शामिल करना, मल्चिंग। किसान स्थिति के अनुसार विभिन्न पुआल प्रबंधन प्रथाओं का उपयोग करते हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान आमतौर पर मशीनीकृतकं बाइन हार्वेस्टर के माध्यम से अक्टूबर में धान की कटाई करते हैं, जो अपने पीछे पराली छोड़ देता है। किसान अगली फसल के लिए जमीन खाली करने के लिए पराली में आग लगाते हैं। हर साल प्रदूषण की समस्या विकराल होती जा रही है। इस दौरान लोगो ंका सांस लेना मुश्किल हो जाता है। वायु प्रदूषण पैदा करने के अलावा, धान के पराली को जलाने से मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ और आवश्यक पोषक तत्वो ंकी हानि होती है, माइक्रोबियल गतिविधियो ंमे ंकमी आती है और भूमि मिट्टी के कटाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। डॉ गुरनाम सिंह ने किसानो को खेती पर होने वाले खर्च का लेखा जोखा रखने की सलाह देते हुए बताया कि फसल उत्पादन पर खर्च कम करके ज्यादा पैदावार कैसी ली जा सकती है इस विषय पर गंभीर होने कि जरुरत है। सस्य वैज्ञानिक डॉ वंदना ने किसानो से मिटटी की जाँच के आधार पर ही खाद और उर्वरक का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि एकीकृत पोषक प्रबंधन समय कि आवशकता है और इस बात पर जोर दिया कि मनुष्य और पशुओं का स्वास्थ्य, मिटटी के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। फसल विविधीकरण पर बोलते हुए डॉ राजेश लाठर ने बताया कि आने वाले समय में सिंचाई योग्य पानी का बहुत बड़ा संकट किसानो के सामने आ सकता है, इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने किसानो से अपील की कि वो अपनी फसलों का चयन अपने प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर करें और मिटटी और पानी को अपनी आने वाली पीढ़ियो ंके लिए बचाकर रखे। अंत में डॉ श्रीदेवी तल्लप्रगडा ने सभी किसानो को शपथ दिलाई कि वो अपने फसल अवशेष को आग के हवाले नहीं करेंगे और फसल अवशेष को खेत में मिलाकर मिटटी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाएंगे।

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