गांव तिलोकेवाला में संत मोहन सिंह मतवाला की 30वीं पुण्यतिथि पर हुआ संत गुरमत समागम
*समागम में देश-विदेश की साध संगत ने पहुंचकर श्रद्वापूर्वक टेका माथा
गांव तिलोकेवाला में श्री गुरुद्वारा निर्मलसर साहिब में सचखंड वासी संत बाबा मोहन सिंह मतवाला की 30वीं पुण्यतिथि पर 200 श्री अखंड पाठ व संत गुरमत समागम व संतों के दीवान सजाए गए। समारोह गुरुद्वारा साहिब के मुख्य सेवादार व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य संत बाबा गुरमीत सिंह तिलोकेवाला की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। समागम में संत महापुरुषों और ज्ञानी रागी व ढाडी जत्थों ने गुरुओं की वाणी का गुणगान किया और तख्त श्री दमदमा साहिब के पंज प्यारों ने अमृत का बांटा तैयार किया। इस समागम में अनेक देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने दरबार साहिब व संत के पवित्र तप स्थान पर माथा टेककर पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई और संत समागम में आए हुए संतों-महात्माओं के प्रवचन सुनकर श्रद्वापूर्वक गुरू का अटूट लंगर ग्रहण किया।
समागम के दौरान गुरुद्वारा साहिब के मुख्य सेवादार व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य संत बाबा गुरमीत सिंह तिलोकेवाला ने उपस्थित सिख संगतों को निहाल करते हुए बताया कि सिख धर्म को सबसे पवित्र धर्म का दर्जा दिया गया है और श्री गुरुग्रंथ साहिब के विचारों की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। इस ग्रंथ में सिखों के दसों गुरुओं का स्वरूप बसा हुआ है, जोकि श्रद्धालुओं को सीधे सचखंड के साथ जोड़ने का काम करता है। संतों के चरणों से कोई भी स्थान तीर्थ हो जाता है। इसलिए हमें संतों का सम्मान अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर साहिब के पूर्व जत्थेदार सिंह साहिब भाई रणजीत सिंह ने गुरू ग्रंथ साहिब की गुरूवाणी का उपदेश बताते हुए बताया कि जो भी इंसान संसार के छोटे-मोटे रसों को त्यागकर गुरूवाणी के रस को ग्रहण करते है, उस इंसान की आत्मा का परमपिता के साथ मिलन हो जाता है। ऐसी आत्मा जन्म-मरण के चक्करों से आजाद होकर प्रभु चरणों में निवास करती है। साथ में उन्होंने बताया कि सिख संगतों को राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है। स्वार्थी लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए सिख कोम में फूट डाल रहे है। सिख कोम को ऐसे स्वार्थी लोगों से दूर रहना चाहिए और सबक सिखाना चाहिए। समागम के दौरान लगाए गए दस्तार शिविर में सिख संगतों ने दस्तार सीखी, जोकि समागम दौरान आर्कषण का मुख्य केंद्र बना रहा। समागम में कविशरी जत्थे भीम सिंह ज्योनामोड वाले, भाई सुखविंद्र सिंह स्वतंत्र और ढाड़ी जत्था अजैब सिंह अनखी ने सिख संगत के गुरू वारों से निहाल किया। इस अवसर पर श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर साहिब के पूर्व जत्थेदार सिंह साहिब भाई रणजीत सिंह, बाबा काका सिंह बूंगा मस्तुआना तख्त श्री दमदमा साहिब, बाबा प्रीतम सिंह मलड़ी, बाबा अवतार सिंह धूलकोट, एसजीपीसी मैंबर बाबा बूटा सिंह गुरूथड्डी, बाबा दर्शन सिंह दादू, बाबा गुरपाल सिंह चोरमार, बाबा प्रेम सिंह देसूजोधा, बाबा अवतार सिंह बूंगा मस्तुआना, बाबा जीत सिंह रघुआना, बाबा जगदेव सिंह लहंगेवाला, बाबा दर्शन सिंह फत्ता मालोका , बाबा मेजर सिंह, बाबा कुंदन सिंह देसू शहीदां, बाबा निर्मल सिंह फग्गू, किसान सेल के प्रधान गुरदास सिंह लक्कड़वाली, चढूनी गु्रप के ब्लाॅक प्रधान मनजीत सिंह ओढ़ां, मेजर सिंह रोड़ी, बलदेव सिंह सिरसा सहित अनेक सिख संगत पहुंची।
कालांवाली एरिया में सिखी के प्रचार के अलावा क्षेत्र में चलाई शिक्षा की लहर
गुरूद्वारा के मुख्य सेवादार संत बाबा गुरमीत सिंह तिलोकेवाला ने बताया कि सन् 1930 से पहले कालांवाली क्षेत्र में कोई स्कूल नहीं था और क्षेत्र शिक्षा के मामलें में काफी पिछड़ा हुआ था। इस दौरान संत मोहन सिंह मतलवाला ने सिखी का प्रचार कर क्षेत्र में गुरूद्वारा निर्मलसर साहिब सहित कई ऐतिहासिक गुरूद्वारों की स्थापना करने के अलावा गांव तिलोकेवाला में गुरू नानक विद्या भंडार के नाम पर प्राइमरी स्कूल की स्थापना की। इस स्कूल ने कई वर्षो तक क्षेत्र के विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की। जोकि वर्तमान में संत मोहन सिंह मतवाला पब्लिक स्कूल के नाम से जाना जाता है। इस स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने के बाद एरिया के लोग बड़े सरकारी पदों पर तैनात होकर अपनी सेवाएं निभा चुके है और कई अपनी सेवाएं निभा रहे है।
मानवता के सच्चे पुजारी थे संत मोहन सिंह मतवाला
संत बाबा गुरमीत सिंह तिलोकेवाला ने बताया कि संत मोहन सिंह मतवाला जी का जन्म समाज में बुराईयों को दूर करने और मानवता की सच्ची सेवा करने के लिए ही हुआ था। संत मोहन सिंह मतवाला ने बचपन से ही सिखी की ललक पैदा होने के बाद लगभग 10 वर्षो तक मुक्तसर साहिब के ऐतिहासिक गुरूद्वारा तंबू साहिब में मुख्य ग्रंथी के रूप में सेवा निभाते हुए सन् 1921 में जैतो के स्वाधीनता मोर्चा में भी बढ़ चढ़कर भाग लिया। इस दौरान बाबा जी ने कनेडियन जत्थे के रूप में भाग लेकर मोर्चे में चल रही गोली में पहले श्री अखंड पाठ का प्रकाश कर इस मोर्चे को विजय दिलाई। इसके बाद संत मोहन सिंह मतवाला ने सन् 1930-31 में गुरूद्वारा निर्मलसर साहिब का निर्माण करवाकर लगभग 70 वर्षो तक कालांवाली एरिया में रहकर गांव कालांवाली, ओढा़ं, पक्का शहीदां, केवल सहित अन्य गांवों में जाकर सिख धर्म का प्रचार किया और लोगों की बुराईयां छुड़वाई। मानवता की सेवा करते हुए संत मोहन सिंह मतवाला 15 जनवरी 1992 को संचखंड जा विराजे। जिसके बाद गुरूद्वारा साहिब की जिम्मेदारी संत बाबा गुरमीत सिंह तिलोकेवाला को सौंपी गई। जिसके बाद से गुरूद्वारा निर्मलसर साहिब में संत गुरमीत सिंह तिलोेकेवाला लगातार संत बाबा मोहन सिंह मतवाला के पद्चिन्ह्रों पर चलकर क्षेत्र में सिखी का प्रचार कर क्षेत्र के लोगों को आपसी भाईचारा कायम रखने और प्रेम-प्यार से रहने का संदेश दे रहे है।