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पारस अस्पताल में की गई पंचकूला की पहली कॉकलियर इंम्पलांट सर्जरी

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पारस अस्पताल में की गई पंचकूला की पहली कॉकलियर इंम्पलांट सर्जरी

पंचकूला, 28 दिसंबर ( ): बच्चों में सुनने की समस्या तथा कॉकलियर इंप्लांट के बारे जागरूकता फैलाने के लिए पारस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के डाक्टरों की एक टीम ने आज मीडिया को संबोधन किया। इस अवसर पर पारस अस्पताल पंचकूला से सीनियर सलाहकार तथा ईएनटी विभाग के प्रमुख डा. संजय खन्ना तथा असिस्टेंट कंस्लटेंट डा. लोकेश मित्तल मौजूद थे।

पारस अस्पताल में की गई पंचकूला की पहली कॉकलियर इंम्पलांट सर्जरी

इस अवसर पर मीडिया को संबोधन करते हुए खन्ना ने कहा कि आज भारत में 22.60 करोड़ सुनने में असमर्थ हैं तथा ऐसे व्यक्तियों में से सिर्फ 15000 व्यक्तियों को दोबारा सुनने की समर्था देने के लिए कॉकलियर इंप्लांट लाया गया है। मूक-बधिर का मतलब है जब किसी व्यक्ति को सुनना बंद हो जाता है। सुनने से असमर्थ होने का मतलब है कि किसी व्यक्ति को 40 डेसीबल से अधिक सुनने की समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयू.एच.ओ.) के अनुसार पूरी दुनिया में 46.6 करोड़ लोगों को मूक-बधिर की समस्या है, जिसमें से 26.6 करोड़ भारतीय हैं तथा 3.4 करोड़ बच्चे हैं। बालपन में होने वाली सुनने की समस्या के मामलों में 60 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं, जिनसे बचा जा सकता है। सुनने की समस्या के कारण अणुवंशिव, गर्भधारण के दौरान पैदा हुई समस्याओं, कानों में इन्फेक्शन होना, कुछ दवाईयां, शोर का प्रभाव तथा उम्र बढऩा हो सकता है। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक 900 मिलियन लोगों को या हर 10 व्यक्तियों में से एक को मूक-बधिर की समस्या होगी। हालांकि भारत अभी ही इस हालात में पहुंच चुका है। मूक-बधिर की समस्या से पीडि़त ज्यादातर लोग कम तथा मध्य आमदन वाले देशों के निवासी हैं। 65 वर्ष की उम्र से ज्यादा के लोगों में एक तिहाई व्यक्तियों को मूक-बधिर की समस्या है तथा इस उम्र के लोग ज्यादातर दक्षिणी एशिया, एशिया प्रांत क्षेत्र तथा अफ्रीका में रहते हैं।

डब्लयू.एच.ओ. ‘ऊंचा सुननेÓ वाली श्रेण में ऐसे लोगों को शामिल करता है, जिनमें सुनने की समस्या थोड़ी से बहुत ज्यादा है। इस तरह के लोग सुनने यंत्र, कॉकलियर इंम्प्लांट तथा ऐसे अन्य उपकरणों से लाभ ले सकते हैं। हालांकि बच्चों तथा बालिगों सहित ऐसे मरीज हैं, जिनको बिल्कुल ही सुनाई देता, उनका इलाज सिर्फ कॉकलियर इंम्पलांट सजर्री ही है।


इस बात पर डा. संजय खन्ना, जिन्होंने पंचकूला में पहली कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी को चार वर्षीय बच्चे पर अंजाम दिया है। उन्होंने कहा कि कॉकलियर इंप्लांट उन बच्चों के लिए बेहतरीन सर्जरी है, जिनको बिल्कुल सुनाई नहीं देता (सुनने की समस्या 90 डेसीबल से ज्यादा है)। जितनी जल्द यह उपकरण बच्चे को लगा दिया जाएगा, उतनी ही जल्द वह सुनना तथा बोलना शुरू कर देगा। डा.  संजय खन्ना को कॉकलियर इंम्पलांट सजर्री तथा स्लीप एपनिया सर्जरी करने का काफी अनुभव प्राप्त है।

पारस अस्पताल में की गई पंचकूला की पहली कॉकलियर इंम्पलांट सर्जरी

उन्होंने बताया कि 3-4 घंटों के आप्रेशन में मरीज के अंदरूनी कांन में इंप्लांट लगाया जाता है। इस इंप्लांट के बाद बच्चे को कम से कम दो वर्षों के लिए बोलने की सिखलाई (स्पीच थैरेपी) लेनी पड़ती है। इस प्रक्रिया से मूक-बधिर बच्चे भी सुनने तथा बोल सकते हैं। यह पता करने के लिए कि कोई बच्चा सुन तथा बोल सकता है, उसका जल्द से जल्द टेस्ट करवाना चाहिए। ओ.ए.ई नामक प्राथमिक सुनने का टेस्ट यह पता करने के लिए किया जाता है कि कोई बच्चा भविष्य में बोल या सुन सकता है या नहीं या फिर किसी बच्चे को सुनने की समस्या है या नहीं। यह टैस्ट जन्म से दूसरे दिन किया जा सकता है। अमरीका, यूरोप तथा आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में बड़ी गिनती में इंप्लांट किए जा रहे हैं, क्योंकि बड़ी उम्र के लोग सुनने यंत्र लगाने के बाद भी सही तरीके के साथ लोगों की बातें सुनने के काबिल नहीं बन पाते।

पारस अस्पताल में की गई पंचकूला की पहली कॉकलियर इंम्पलांट सर्जरी

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डा. संजय खन्ना ने इस उपकरण के बारे विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि कॉकलियर इंप्लांट एक इलैक्ट्रोनिक उपकरण है, जो कि अंदरूनी कान के खराब या काम नहीं कर रहे हिस्से से आवाज के संकेत दिमाग तक पहुंचाता है। इसके दो हिस्से होते हैं, पहला हिस्सा कान के आसपास स्थित हड्डी में सर्जरी करके लगाया जाता है, जिस पर इस रिसीवर लगा होता है, जो दिमाग को आवाज के संकेत इलेक्ट्रोनिक तरंगों के रूप में तबदील करके भेजता है। दूसरा हिस्सा बाहरी उपकरण होता है, जो माइक्रोफोन या रिसीवर, स्पीच प्रोसेसर तथा एक एंटीना को मिलाकर बना होता है। यह हिस्सा आवाज को प्राप्त करके बिजली संकेतों में तबदील करता है तथा इसको कॉकलियर इंप्लांट के अंदरूनी हिस्से तक भेजता है।

डा. संजय खन्ना ने कहा कि हरियाणा में 115000 से ज्यादा लोगों को किसी न किसी तरह की सुनने की समस्या है तथा यह गिनती बढ़ती जा रही है। सुनने की समस्रूा से पीडि़त बच्चों की पहचान करके उनका इलाज करने की उम्र गुजर जाने के मामले कम करने के लिए यूनिवर्सल न्यूबार्न हियरिंग स्क्रीनिंग (यू.एन.एच.एस.) प्रोग्राम हरियाणा में जल्द से जल्द लागू किए जाने की जरूरत है। पारस अस्पताल, पंचकूला के अंदर बच्चों में मूक-बधिर की हर तरह समस्याओं को जल्द पहचानने तथा इलाज करने के लिए हर सुविधा मौजूद है।


इस अवसर पर पारस अस्पताल, पंचकूला के फैसिल्टी डायरेक्टर श्री आशीष चड्ढा ने कहा कि भारत में हर 1000 बच्चों में से चार बच्चों को ज्यादा सुनने की समस्या होती है, जिनमें से  100000 बच्चे हर वर्ष जन्म से ही सुनने की समस्याओं से पीडि़त होते हैं। के्रद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भारत में बालिगों में मूक-बधिर होने की दर 7.6 प्रतिशत है तथा बच्चों में यह 2 प्रतिशत है। सुनाई न देना भारत में मूक-बधिर का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।