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संत शिरोमणि गुरु कबीर दास जी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक, समाज में आपसी भाइचारे, प्रेम व विश्वबंधुत्व का दे रही संदेश : उपायुक्त अनीश यादव

सिरसा, 24 जून।

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अनुसूचित जातियां एवं पिछड़े वर्ग कल्याण विभाग एवं जिला प्रशासन द्वारा वीरवार को स्थानीय धानक धर्मशाला में संत शिरोमणि गुरु कबीर दास जी के 624वें प्रकट दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित राज्य स्तरीय समारोह व भजन संध्या का लाइव प्रसारण भी किया गया, समारोह में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रदेश वासियों को संबोधित किया। उनके साथ सिरसा लोकसभा क्षेत्र की सांसद सुनीता दुग्गल, कुरुक्षेत्र के सांसद नायब सिंह सैनी, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एव हरियाणा सार्वजनिक उपक्रम ब्यूरो के चेयरमैन सुभाष बराला, अनुसूचित जातियां एवं पिछड़े वर्ग कल्याण विभाग के प्रधान सचिव विनित गर्ग, निदेशक रेणू फुलिया, सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग के महानिदेशक डा. अमित अग्रवाल, अतिरिक्त निदेशक डा. कुलदीप सैनी मौजूद थे।


जिला स्तरीय समारोह में मुख्य अतिथि उपायुक्त अनीश यादव ने संत शिरोमणि गुरु कबीर दास जी के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित किया तथा पुष्प अर्पित कर नमन किया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने संत कबीर दास जी के जीवन चरित्र व उनकी शिक्षाओं व दौहों के बारे में विस्तार से व्याख्यान किया। कलाकारों ने संत कबीर दास जी की शिक्षाओं पर आधारित भजन गायन भी किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ भाजपा नेता एवं धानक धर्मशाला के प्रधान रत्नलाल बामणिया ने मुख्यअतिथि का स्वागत किया और उन्हें स्मृति चिह्नï व शॉल भेंट कर सम्मानित किया। सुनील बामणिया ने मंच संचालन किया।
उपायुक्त अनीश यादव ने समारोह में उपस्थितजनों को संत शिरोमणि गुरु कबीर दास जी प्रकट दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि संत कबीर दास जी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और सभी को उनका अनुसरण करना चाहिए। संत कबीर 15वीं सदी के महान संत, समाज सुधारक व कवि थे, जिन्होंने समाज में आडंबरों व अंधविश्वास को मिटाने का कार्य किया। संत कबीर की वाणी सभी धार्मिक ग्रंथों में संकलित है जो इस बात का प्रतीक है कि संत कबीर की वाणी को सभी धर्मों में विशेष स्थान मिला है। संत कबीर जी का जीवन चरित्र हमें भाईचारे का संदेश देता है और उनकी वाणी का सार प्रेम व विश्वबंधुत्व का है। उनकी वाणी सभी धार्मिक ग्रंथों में संकलित है और सभी धर्मों में विशेष स्थान मिला है।


उपायुक्त ने कहा कि ‘दया धर्म का मूल है, पाप मूल संताप। जहां क्षमा वहां धर्म है, जहां दया वहां आप।।Ó अर्थता धर्म का मूल स्तंभ ही दया है और सभी संकट और दुखों का कारण पाप ही है, इसलिए धर्म वहीं है जहां पर क्षमा और दया जैसे मानवीय गुण हैं। उन्होंने कहा कि संत कबीर जी की शिक्षाओं का अनुसरण करने से वर्तमान समय में समाज में काफी बदलाव हुए हैं, लेकिन अभी भी काफी बदलाव करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि समाज को सही दिशा देने में शिक्षा बहुत बड़ा योगदान है, इसलिए बच्चों को शिक्षित करें ताकि समाज ऊपर उठ सके। संत कबीर जी ने बिजक नाम से ग्रंथ की भी रचना की और उनके दोहों व रचनाओं ने समाज में समानता व भाई चारे की भावना जागृत कर रही है।


उन्होंने कहा कि कबीर दास जी के मुख पर सरस्वती विराजमान थी जिससे उन्होंने ऐसे ऐसे दोहे बनाएं जो मनुष्य के मन को छु जाते हैं। उन्होंने कहा कि कबीर पहले संत थे जिन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया। उन्होंने लोगों को जागृत करके बताया कि ईश्वर मंदिर में न होकर मन में विराजमान है। सबको मिलकर उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संत कबीर जी के दोहो में जीवन का सार छिपा है उनके दोहे समाज को जीने की कला सिखाते है।

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वरिष्ठ भाजपा नेता एवं धानक धर्मशाला के प्रधान रत्नलाल बामणिया ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा संत, महात्माओं की जयंतियां सरकारी स्तर पर मनाई जा रही है ताकि युवा पीढ़ी हमारे संतो, महापुरुषों के जीवन चरित्र से रुबरु हो सके और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपना कर आगे बढ सके। उन्होंने कहा कि हमें महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर उनके आदर्शों की पालना करनी चाहिए। जितने भी महापुरुष पैदा हुए हैं, सभी का ध्यय मानव कल्याण था। इसी प्रकार संत शिरोमणि कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को नई दिशा देने का काम किया। उन्होंने हमेशा यही कहा है कि ईश्वर में विश्वास रखने वाला ही सच्चा इंसान है। उन्होंने बताया कि संत कबीर दास ने विभिन्न दोहों व रचनाओं के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। इस अवसर पर जिला सूचना एवं विज्ञान अधिकारी रमेश शर्मा भी उपस्थित थे। इस मौके पर जिला कल्याण अधिकारी सुशील कुमार शर्मा ने मुख्यअतिथि व अन्य अतिथियों का स्वागत किया।
इस अवसर पर वरिष्ठï भाजपा नेता श्याम बजाज, भूपेश मेहता, नगर पार्षद सुमन बामणिया, कौशल्या वर्मा, नारायण पाल, गिरधर बागड़ी,  कृष्ण लाडवाल, शेर सिंह फौजी, ओम प्रकाश बामणिया, अनिल सौलंकी, विनोद बामणिया, राजेश राठोर, वेद प्रकाश फुटेला मौजूद थे।