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सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की असीम कृपा से पंजाब व चंडीगढ़ के निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का शुभारंभ

सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की असीम कृपा से पंजाब व चंडीगढ़ के निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का शुभारंभ

पंचकूला, 4 जनवरी, 2020ः – सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की असीम कृपा से पंजाब व चंडीगढ़ के निरंकारी यूथ सिम्पोजियम का शुभारंभ पंचकूला के सेक्टर- 5 स्थित शालीमार ग्राउंड में किया गया। निरंकारी यूथ सिम्पोजियम में पंजाब, चंडीगढ़ से आये हुए पंजीकृत युवाओं ने भाग लिया।


इस अवसर पर सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सभी निरंकारी युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि – आप सभी पंजाब के गाँव, कस्बों व शहरों से यहाँ पर पहुंचे हैं। यह जो उत्साह व ज़स्बा आप सभी में नज़र आ रहा है, उसे यूँ ही सबने बरकरार रखना है और जो गत् दिवस भी खेल-खेल में आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ पहलू देखने को मिला है, वह मिशन की शिक्षाओं को ही दर्शाता है।


आगे माता जी ने फरमाया कि जितने भी खेल यहां पर हुए है उसमें कही पर भी प्रतियोगिता का स्वरुप नज़र नहीं आया है बल्कि हर एक स्थान पर एकता का ही स्वरूप देखने को मिला है। सभी ने एक-दूसरे से प्यार, प्रीत, भाईचारे का जो ज़ज्बा यहाँ आपस में दिखाया है, उसी की महक, खुशबू से इस धरा को सुंदर गुलिस्तां बनाना है।


निरंकारी यूथ सिम्पोजियम में सांस्कृतिक व संवाद द्वारा पहले दिन तीन तत्वों का ज़िक्र किया गया। जिस प्रकार धरा का चरित्र हमें सहनशीलता व प्रकृति हम सबको खुशबू देना सिखाती है, इसी प्रकार हमारा व्यवहार ही हमारा चरित्र बन जाये। किसी को परखने की बजाए हम दूसरों को समझने में अपना ध्यान लगाएं। चाकू का उदाहरण देकर समझाया कि चाकू का प्रयोग एक सर्जन मरीज का इलाज करने के लिए करता है वहीं एक आरोपी उससे किसी की जीवन लीला ही समाप्त कर देता है। अब यह हम पर है कि हमने जीवन में किस बात को कैसे अपनाना व कैसा व्यवहार करके उसे उपयोग में लाना है।


आगे माता जी ने फरमाया कि – यदि हमारेे आचरण में ब्रह्म नज़र आएगा तो सबके साथ सुंदर व्यवहार होगा तभी सही मायनों में हम ब्रह्मज्ञानी कहलाएंगे। कर्मों से सुंदर योग बने तभी हम सही मायनों में कर्मयोगी बन सकते हैं। कामकाज के दौरान बॉस को लेकर कई धारणायें है, परन्तु आज से निरंकारी युवाओं ने उसे बेस्ट ऑफ संसार मानकर काम को करना है, जिससे कि तालमेल बेहतर हो और हमारे व्यवहार में सुंदरता झलके। हम किसी को उसके बाहरी स्वरूप से नहीं अपितु उसके अंदर छुपी हुई प्रतिभा व गुणों के आधार पर उस व्यक्ति का सत्कार करें।

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