*Prime land freed from encroachments in Manimajra by MC Chandigarh*

*भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी व इन विट्रो निषेचन की वर्तमान स्थिति, हालिया प्रगति और भविष्य के परिप्रेक्ष्य पर सेमीनार का आयोजन*

*गौसेवा आयोग का लक्ष्य गौमाता की उन्नति एवं नस्ल सुधार के लिए हर संभव प्रयास करना – श्रवण गर्ग*

*लुवास विश्वविद्यालय में भ्रूण प्रत्यारोपण की एक उत्तम व आधुनिक प्रयोगशाला की गई स्थापित – कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा*

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पंचकूला, 12 मार्च – लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय हिसार, हरियाणा गौसेवा आयोग, पशुपालन एवं डेयरी विभाग हरियाणा और हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड द्वारा संयुक्त रूप से भ्रूण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी व इन विट्रो निषेचन की वर्तमान स्थिति, हालिया प्रगति और भविष्य का परिप्रेक्ष्य पर राष्ट्रीय कार्यशाला एवं विचार मंथन पर सेक्टर-1 पंचकूला के पीडब्लूडी रेस्ट हाउस के सभागार में सेमिनार का आयोजन किया गया। 

     लुवास कुलपति (प्रो.) डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हरियाणा गौसेवा आयोग के चेयरमैन श्री श्रवन गर्ग, हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड के चेयरमैन श्री धर्मबीर मिर्जापुर, गौसेवा आयोग के उप चेयरमैन श्री पूर्णमल यादव, व गोसेवा आयोग के सदस्यों सहित पशुपालकों, गोशाला संचालक का स्वागत करते हुए कहा कि लुवास विश्वविद्यालय द्वारा गउओं की नस्ल सुधार के लिए सार्थक कदम उठाये जा रहे हैं। इसके लिए लुवास विश्वविद्यालय में भ्रूण प्रत्यारोपण की एक उत्तम, पूरी तरह से इस कार्य को समर्पित आधुनिक प्रयोगशाला स्थापित की जा चुकी है। यहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं उपलब्ध है। 

     उन्होंने बताया कि इस प्रयोगशाला में लुवास के होनहार वैज्ञानिकों की एक टीम, हरियाणा प्रदेश के पशुओं में नस्ल सुधार के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। हरियाणा में पशुधन विशेषकर गऊओं की हरियाणा और साहीवाल नस्ल के अत्यंत उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध है, जिनका प्रयोग अन्य देसी गउओं के नस्ल सुधार में किया जा सकता है जोकि हमारे प्रदेश की आर्थिक उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।

कुलपति ने समारोह में उपस्थित गौसेवा आयोग के सदस्यों, गौशाला संचालकों एवं किसान भाइयों के प्रयत्नों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इन लोगों की सुधारशील सोच एवं प्रयत्नों के कारण गउओं में नस्ल सुधार का कार्य प्रगति पर है। उन्होंने आगे बताया कि लुवास विश्वविद्यालय किसानों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर है तथा किसान कभी भी विश्वविद्यालय में आकर यहां चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं।

      इस अवसर पर हरियाणा गौसेवा आयोग के चेयरमैन श्री श्रवण गर्ग ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गौसेवा आयोग का लक्ष्य गौमाता की उन्नति एवं नस्ल सुधार के लिए हर संभव प्रयास करना है। इस कार्य हेतू आयोग द्वारा समय-समय पर वैज्ञानिक कार्यक्रम एवं गौशालों के लिए हर संभव मदद दी जाती हैै। उन्होंने बताया कि आज के समय में अच्छी नस्ल की गउओं को यह सोच कर सड़कों पर छोड़ दिया जाता है कि ये गऊ इस समय या तो दूध नहीं देगी या बहुत कम दूध दे रही हैै, परन्तु सड़क पर घूम रही ये गौमाता, नस्ल सुधार के कार्यक्रम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है, जैसे की भ्रूण प्रत्यारोपण विधि से इन गउओ से अच्छी नस्ल के बछड़े/बछड़ियां पैदा किये जा सकते है। आज के समय में वैज्ञानिक सोच की जरूरत है। 

     उन्होंने कहा कि इस दिशा में लुवास विश्वविद्यालय द्वारा कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा के नेतृत्व में सराहनीय प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि गौसेवा आयोग द्वारा हरियाणा प्रदेश की गौशालाओं को वित्तीय सहायता दी जा रही है तथा उन्हें उम्मीद है कि आयोग एवं लुवास विश्वविद्यालय के सम्मिलित प्रयासों की बदोलत हरियाणा प्रदेश भारत देश का ऐसा पहला राज्य होगा जहाँ पर कोई भी गौमाता सड़कों पर नहीं घूम रही होगी, अपितु गौशालाओं एवं किसान भाइयों के घरो से नस्ल सुधार द्वारा एवं अन्य उपयोगी उत्पादों द्वारा महत्वपूर्ण आर्थिक योगदान देगी।

      इस अवसर पर भ्रूण प्रत्यारोपण विधि के विशेषज्ञ राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड गुजरात से डॉ. सिद्धार्थ ने भू्रण स्थानांतरण प्रौद्योगिकी पर जानकारी देते हुए बताया कि यदि इस तकनीक को पशुपालक के स्तर पर अपनाना है तो वह लागत प्रभावी होनी चाहिए, इसे लागू करने के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति और उपभोग्य वस्तुएं आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए। हालांकि इसमें कुछ चुनौतियां भी हैं, जिनमें से पहली है विशिष्ट पशुओं की पहचान करना और ऐसे पशुपालकों का होना, जिनके पास 15 से 20 पशु उपलब्ध हो, ताकि एक समय पर भ्रूण प्रत्यारोपण किया जा सके। 

     उन्होंने आगे बताया कि भारत सरकार कई योजनाओं के जरियें किसानों को अपनी आजीविका बढ़ाने की दिशा में इस तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस तकनीक का उपयोग करके पीढ़ी अंतराल को कम किया जा सकता है। वहीं डॉ. अजय पाल सिंह असवाल, कलसी, उत्तराखंड डेयरी विकास बोर्ड ने ईईटी-आईवीएफ तकनीक की सफलता के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय, राज्य डेयरी विकास बोर्ड, गौशालाओं और राज्य पशुपालन विभाग और अन्य हितधारकों के सहयोग से एक समग्र दृष्टिकोण मौजूद होना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक छोटे तरल नाइट्रोजन सिलेंडर में हजारों भू्रण आयात किए जा सकते हैं और इसे सही प्राप्तकर्ता को हस्तांतरित किया जा सकता है। 

      डॉ. असवाल ने कहा कि जिन पशुओं में उत्पादन की कमी होती है, लेकिन वह प्रजनन में निपुण होते हैं, उन्हें इस तकनीक का उपयोग करके अच्छे उत्पादन के साथ कई जानवरों को पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा पशुपालन क्षेत्र की दृष्टि से एक समृद्ध विरासत वाला राज्य है और इस तकनीक का उपयोग करके राज्य पशुपालन का भविष्य बदल सकता है और इसकी कोई सीमा नहीं होगी। 

      डॉ. एसपी सिंह, सलाहकार, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने प्रौद्योगिकी के पहलुओं के बारे में बताया। समारोह में आए हुए गौशाला संचालकों एवं किसानों ने लुवास विश्वविद्यालय व गौसेवा आयोग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें इस कार्यक्रम से अत्यंत ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई है जो कि आगे चल कर गउओं में नस्ल सुधार पर काफी सहायक सिद्ध होगी। उन्होंने यह भी आग्रह किया की इस तरह के कार्यक्रम लगातार आयोजित करते रहने चाहिए।

अनुसंधान निदेशक डॉ. नरेश जिंदल ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए बताया कि इस सेमिनार में अलग-अलग सत्र का आयोजन किया गया जिसमें 150 के आसपास प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। डॉ. जिंदल ने मुख्य अतिथि अन्य गणमान्य अतिथि, गौशाला संचालकों, पशुपालकों एवं लुवास वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया।

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