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*भारतीय महापर्व प्रजातांत्रिक चेतना के प्रमाण हैंः डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री*

*हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी में कुम्भ का सामाजिक एवं बौद्धिक प़क्ष पर विचार-गोष्ठी का आयोजन*

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पंचकूला, 24 फरवरी – हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के महाराजा दाहिर सेन सभागार में कुम्भ का सामाजिक एवं बौद्धिक प़क्ष पर विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आरम्भ में साहित्य अकादमी, चंडीगढ़ ने सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण कर समारोह की शुरुआत की।

अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि कुछ सुनिये, कुछ कहिए की परम्परा विश्व को भारत की ही देन है। कुंभ के माध्यम से पूरे भारत के स्वरूप से साक्षात्कार होता है। जब भारत के कोने-कोने से लोग वहां पहुंचते हैं तो यह प्रमाणित होता है कि पूरा भारत एक है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों के समाजशास्त्र विभागों को कुंभ जैसे पर्व शोध का एक बड़ा अवसर प्रदान करते हैं। वहां उन्हें भारत की एकात्मकता के अनेक सोपान मिलेंगे। कुंभ में विभिन्न पद्धतियों में मंथन होता है। विषपान के लिए गहन साधना की जरूरत होती है। भारतीय महापर्व भारत की प्रजातांत्रिक चेतना के प्रमाण हैं। ज्ञान की यात्रा होती है उसके खेमें नहीं होते। ज्ञान की यात्रा सनातन है और भारतीय ज्ञान परम्परा इसी सनातन यात्रा का प्रतिनिधित्व करती है।

विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में पधारे पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. डॉ. सुधीर कुमार ने अपने वक्तव्य की शुरुआत में कहा कि कुंभ में विद्वानों का संगम होता है। इससे विद्वान ज्ञान का लोक में विस्तार करते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड ही एक कलश या कुम्भ है। कुंभ का मेला समरसता का बड़ा प्रतीक है। भारतीय प्रज्ञा परम्परा में विभेद का प्रमाण नहीं है। कुंभ का महापर्व ज्ञान की धारा को लोक में प्रवाहित करने का एक बड़ा अवसर है। इससे लोक को प्राण वायु प्राप्त होती है। ज्ञान, कर्म व भक्ति का अद्भुत समन्वय भारत विश्व के सम्मुख र्प्रस्तुत करता है। धर्म के आधार के साथ काम और अर्थ का समन्वय ही मोक्ष प्राप्ति का आधार है। अखाड़ों का योगदान राष्ट्र के लिए बलिदान की भावना को प्रबल करता है।

कार्यक्रम में डॉ. मनमोहन सिंह, पूर्व उपाध्यक्ष, चंडीगढ़ साहित्य अकादमी, चंडीगढ़ ने भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार अच्छाई व बुराई का सतत् संयोग बताया। अच्छाई कब बुराई में परिवर्तित हो जाये कहा नहीं जा सकता। गुरुनानक जी उदासीन होकर ज्ञान को लोक में प्रवाहित करने के लिए यात्राएं करते थे। गुरुनानक जी ने कहा कि ज्ञान व्यक्ति के मन को बांधकर रखता है जैसे कुंभ जल को बांध कर रखता है। उन्होंने कहा कि जिहाद का अर्थ मन से संघर्ष करने की प्रक्रिया थी जिसे विकृत कर प्रयोग किया जा रहा है। ज्ञान की परम्परा में विरोध नहीं होता। यह ज्ञान की पद्धतियां हैं, इनमें विरोध का तत्त्व व्यक्ति द्वारा निहितार्थ स्वरूप लाया गया है।

कार्यक्रम में डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी, निदेशक, हिंदी एवं हरियाणवी प्रकोष्ठ ने भी महाकुंभ के अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. चितरंजन दयाल सिंह कौशल, निदेशक, संस्कृत प्रकोष्ठ ने कुंभ के महत्व पर कविता प्रस्तुत करते हुए अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विजेन्द्र कुमार ने किया।

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