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दिल व कैंसर के बाद स्वास रोग दुनिया भर में मौतों का सबसे बड़ा कारण: डा.एस.के. गुप्ता

सांस संबंधी बीमारियां भारत में छुपी हुई महामारी

चंडीगढ़, 19 नवंबर ( ): फेफड़ों के खराब होने से संंबंधित करोनिक आब्सट्रक्टिव पलमोनेरी डिजीज (सीओपीडी) के बारे जागरूकता पैदा करने के लिए पारस अस्पताल पंचकूला के डाक्टरों की एक टीम ने इस रोग से संबंधित कई तथ्यों तथा काल्पनिक बातों के बारे जानकारी दी। इस अवसर पर फेफड़ों संबंधी सीनियर सलहाकार डा. एस.गुप्ता व सीनियर मेडीसन कंस्लटेंट डा. सुमित जैन मौजूद थे।  उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में लाखों लोग सी.ओ.पी.डी. रोगों से पीडि़त हैं, जिनमें एमफिसिमा, सोजिश, ना ठीक होने वाला दमा तथा सोजिश के कुछ अन्य लक्ष्ण शामिल हैं। करोनिक आब्सट्रक्टिव पलमोनेरी डिजीज (सीओपीडी ) फेफड़ों संबंधी सभी बीमारियों के लिए प्रयोग किया जाने वाला आम नाम है। इस बीमारी की पहचान सांस लेने में तकलीफ से होती है।

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करोनिक आब्सट्रक्टिव पलमोनेरी डिजीज (सीओपीडी) रोग तथा इसके इलाज पर प्रकाश डालते हुए अस्पताल पंचकूला के फेफड़ों संबंधी सीनियर सलहाकार डा. एस.के. गुप्ता ने कहा कि दिल की बीमारियां तथा कैंसर के बाद सीओपीडी दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों की मौत का कारण बनता है। ज्यादातर लोग सांस लेने में तकलीफ व खांसी को अपनी बढ़ती उम्र से जोड़ लेते हैं। हो सकता है कि इस बीमारी के शुरूआती दौर में आपको इसके लक्षणों के बारे पता न लगे। सी.ओ.पी.डी. रोग कई वर्षों तक बगैर लक्ष्णों से भी रह सकता है। जब यह रोग बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, उस समय आपको इसके लक्ष्ण देखने को मिलते हैं। इसकी पहचान फेफड़ों के अंदर तथा बाहर हवा के दौरे में रूकावट से होती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है।


पारस अस्पताल पंचकूला में इनटरनल मेडीसन के सीनियर सलाहकार डा. सुमित जैन ने अपने अनुभव सांझे करते हुए कहा कि सी.ओ.पी.डी. आम तौर पर 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में देखने को मिलता है। इस रोग से पीडि़त हर कोई नही, पर ज्यादातर (90 प्रतिशत) लोग ऐसे होते हैं, जो कि धूम्रपान करते हैं। सीओपीडी ऐसे लोगों को भी हो सकता है, जो लंबे समय तक फेफड़ों के लिए खतरनाक हालात जैसे रसायनों, धूल या धुएं में तथा चूल्हे के सामने काम करते रहे हैं। ऐसे लोगों को भी यह रोग हो सकता है, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया या वह कभी लंबे समय तक प्रदूषण भरे वातावरण में नहीं रहे। भारत में सी.ओ.पी.डी. की दर 5.5 से 7.55 प्रतिशत है। बीते समय दौरान हुए सर्वेक्षण में बताया गया है कि पुरुषों में सी.ओ.पी.डी. की अधिक से अधिक दर 22 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं ये यह 19 प्रतिशत है।


इस अवसर पर डा. सुमित जैन ने कहा कि इस रोग से पीडि़त लोगों को थोड़ा दूर चलने-फिरने में सांस चढ़ जाता है तथा यह बहुत जल्द बीमारियों तथा निमोनिया का शिकार हो जाते हैं। अकसर, पीडि़तों को रोजाना 24 घटें तक आक्सीजन की जरूरत रहती है। यदि आप में एफीसिमा या सोजिश की समस्या है तो आप सी.ओ.पी.डी. से पीडि़त हैं। सी.ओ.पी.डी. के लंबे समय रहने से दिल का बायां तरफ का हिस्सा बड़ा हो जाता है, जिससे अंत में व्यक्ति की मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि सी.ओ.पी.डी. का कोई स्थाई इलाज नहीं है, पर रोग से शरीर का ज्यादा नुकसान होने से बचाने तथा जीवन का स्तर बेहतर करने के तरीके मौजूद हैं।

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डा. एस.के. गुप्ता ने यह भी कहा कि जब सर्दी आती है तो सी.ओ.पी.डी. से पीडि़त लोगों का स्वास्थ्य खराब हो जाता है। उनको ज्यादा  ठंड, जुकाम तथा अन्य सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। इस रोग के लक्ष्ण सॢदयों दौरान ज्यादा बढ़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि फेफड़े खून में आक्सीजन मिलाने का काम करते हैं तथा दिल खून का दौरा चलाता हैं, जिससे आक्सीजन शरीर के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचती हैं। तापमान घटने से सांस नली सिकुड़ जाती है, जिससे खून का दौरा रूकता है तथा दिल को आक्सीजन नहीं मिलती। दिल का ज्यादा तेजी से धडक़ता है तथा ब्लड प्रैशर बढ़ जाता है। इसलिए ठंड के मौसम में सांस प्रणाली से ज्यादा भार पड़ता है। इसलिए यह जरूरी है कि जब भी आपको इस तरह के लक्षण दिखें आप डाक्टर को जल्द से जल्द संपर्क करें।


इस अवसर पर मौजूद पारस अस्पताल पंचकूला के फैसिलिटी डायरेक्टर डा. आशीष चड्ढा ने कहा कि मौजूदा समय की मांग है कि बीमारियों से बचाव की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जाए। इसमें सी.ओ.पी.डी तथा अन्य फे$फड़ों से संबंधित बीमारियां तथा इनके खतरों के बारे जागरूकता फैलाना शामिल है। जिसके लिए सी.ओ.पी.डी. तथा संबंधित समस्याओं के लिए बड़े सतर पर सार्वजनिक शिक्षा प्रोग्राम, वर्कशाप तथा सलाहकार सेशन चलाने चाहिए।