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स्वर्णप्राशन: आयुर्वेद की एक अमूल्य परंपरा

शिविर में 100 से अधिक बच्चों को हुआ लाभ

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पंचकूला,9 अप्रैल राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान एमडीसी सेक्टर 5 में आयोजित स्वर्णप्राशन शिविर में 100 से अधिक बच्चों को लाभ हुआ।
डॉ अवस्थी ने बताया कि
स्वर्णप्राशन एक पारंपरिक आयुर्वेदिक प्रक्रिया है, जिसमें शिशु अवस्था (6 माह) से लेकर किशोरावस्था (16 वर्ष) तक के बच्चों को शुद्ध स्वर्ण से संसाधित औषधि दी जाती है। यह औषधि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, बौद्धिक विकास और समग्र स्वास्थ्य को सशक्त बनाने में सहायक मानी जाती है। यह प्रक्रिया आयुर्वेदिक संस्कारों का एक अभिन्न अंग रही है, जिसका उद्देश्य जीवनभर अच्छे पाचन, मानसिक संतुलन, शारीरिक बल और दीर्घायु को सुनिश्चित करना है।
स्वास्थ्य संवर्धन पर केंद्रित इस परंपरा को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, पंचकूला के कौमारभृत्य विभाग द्वारा प्रत्येक पुष्य नक्षत्र के दिन निःशुल्क मासिक स्वर्णप्राशन शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। इस स्वर्णप्राशन शिविर में 100 से अधिक बच्चों को लाभ हुआ।आगामी शिविर अगला शिविर 3 मई 2025 को निर्धारित है। इस अवसर पर डॉ. अपर्णा दिलीप, सहायक प्रोफेसर, कौमारभृत्य विभाग, राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, पंचकूला ने बताया कि “हालिया शोधों में यह स्पष्ट हुआ है कि स्वर्णप्राशन में प्रतिरक्षा को बढ़ाने वाले (इम्यूनोमॉडुलेटरी) गुण विद्यमान हैं, जो बच्चों को विभिन्न संक्रमणों से बचाने में सहायक होते हैं। क्लिनिकल अध्ययनों के अनुसार यह औषधि न केवल बौद्धिक क्षमता और शारीरिक विकास को प्रोत्साहित करती है, बल्कि IgG स्तर जैसे सामान्य स्वास्थ्य संकेतकों में भी सुधार करती है। कुछ अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि जिन बच्चों को नियमित रूप से स्वर्णप्राशन दिया गया, उनमें संज्ञानात्मक क्षमताओं, प्रतिरक्षा और शारीरिक विकास में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, साथ ही संक्रमण की आवृत्ति में भी कमी आई।”
जो माता-पिता अपने बच्चों के लिए इस लाभकारी आयुर्वेदिक प्रक्रिया को अपनाना चाहते हैं, वे इन शिविरों में भाग लेकर इसका लाभ उठा सकते हैं। अधिक जानकारी हेतु राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, पंचकूला के कौमारभृत्य विभाग से संपर्क करें।

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