पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से पर्यावरण को बचाने व किसानों की आमदनी बढाने के उद्ïदेश्य से प्रदेश सरकार द्वारा पराली प्रबंधन के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे है।

सिरसा, 2 दिसंबर। पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से पर्यावरण को बचाने व किसानों की आमदनी बढाने के उद्ïदेश्य से प्रदेश सरकार द्वारा पराली प्रबंधन के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे है। इसी कड़ी में किसानों को भारी सब्सिडी पर पराली प्रबंधन यंत्र दिए गए है , जिससे न केवल कम समय में पराली का प्रबंधन किया जा सकता है बल्कि भविष्य में प्रदूषण की समस्या से भी निजात मिलेगी। जिला के किसानों द्वारा पराली प्रबंधन के लिए मशीनों का उपयोग किया जा रहा है जोकि उनकी आमदनी बढ़ाने में भी सहायक सिद्घ हो रहा है।

इसी कड़ी में गांव नेजाडेला कलां के किसान सरदार इकबाल सिंह नम्बरदार, अजीत सिंह, नवरुप सिंह ने बातचीत के दौरान बताया कि जिला प्रशासन व कृषि विभाग द्वारा किसानों को समय समय पर पराली न जलाने बारे तथा यंत्रों के प्रयोग हेतू जागरूक किया गया है जो कि पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए जरूरी है।

किसान इकबाल सिंह ने अपने अनुभव सांझे करते हुए बताया कि पर्यावरण को बचाने के लिए वे कभी भी पराली को जलाते नहीं बल्कि नई-नई आधुनिक मशीनों से उनकी कटाई करते है। इसी प्रकार उन्होंने इस वर्ष भी अपने खेत में बेलर मशीन का प्रयोग किया तथा पराली की गांठों को बिजली बनाने वाली यूनिट में भेजा। उन्होंने बताया कि वे यह यंत्र किराए पर लाए है, जिससे पराली की कटाई व उसे व्यवस्थित ढंग से उठाया जा रहा है। उन्होंने किसानों से कहा कि पराली जला कर भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्टï न करें। भूमि में कई मित्र कीट होते हैं जो पराली जलाने से नष्टï हो जाते हैं, ये मित्र कीट भूमि में फसल की पैदावार को बढावा देते हैं, इसीलिए भूमि को और अधिक उपजाउ बनाने के लिए फसल अवशेषों को जलाने की बजाय आधुनिक मशीनों के माध्यम से भूमि में ही मिलाएं। पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार का सहयोग करें ताकि आने वाली पीढियों को पर्यावरण समस्या से जूझना न पड़े।
किसान इकबाल सिंह व अजीत सिंह ने बेलर यंत्र के बारे में बताया कि बेलर के प्रथम भाग पराली को खेत से बाहर निकालता है तथा दूसरे भाग द्वारा पराली को खेत में इक_ा करने के लिए बेलर मशीन का प्रयोग किया जा सकता है। यह मशीन खेत में जगह-जगह बिखरी हुई पराली को इक_ा करके आयताकार गांठें बना देती है। इन आयताकार गांठों को खेत में बड़ी आसानी से इक_ा किया जा सकता है। पराली की इन गांठों को बालन के लिए गोले बनाने के लिए, गत्ता बनाने के लिए, कंपोस्ट तैयार करने के लिए, पराली चारे बनाने के लिए, बिजली पैदा करने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। यह मशीन केवल कटे हुए पराली को ही इक_ा करती है। इसलिए यदि सारी पराली खेत में इक_ा करके बाहर निकालना हो तो इस मशीन को चलाने से पहले खेत में पराली के खड़े हिस्से को स्टबल शेवर के साथ काट लेना चाहिए।

बेलर से पलभर में गांठें बन जाती हैं। यह गांठे 40-110 सेंटीमीटर की लंबाई की गांठें बनाती है। गांठों की ऊंचाई 36 सेंटीमीटर व चौड़ाई 46 सेंटीमीटर हो सकती है। गांठों का भार 15 से 35 किलो तक का होता है। यह मशीन एक दिन में 15 से 20 एकड़ के खेत की पराली की गांठें बना देती है। उन्होंने बताया की पराली की गांठे बनाकर इसे पंजाब के लम्बी, मलोट, मानसा खोखर, राजस्थान के संगरिया में स्थापित बिजली युनिट में बिजली की पैदावार के लिए भेजा जाता है जोकि 70 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों से पराली खरीदती हैं।
उन्होंने हरियाणा सरकार से भी अनुरोध किया कि किसानों की सुविधा के लिए एक ऐसा ही उद्योग जिसमें पराली का उपयोग बिजली या अन्य उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है, उसको स्थापित करें ताकि किसान अन्य राज्य में न भेज कर अपने ही राज्य में पराली का प्रबंधन कर उद्योगों को भी बढावा दें।
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