उपायुक्त ने समाधान शिविर में सुनी लोगों की समस्याएं

*फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव और पोषक तत्व हो जाते हैं नष्ट-कृषि वैज्ञानिक*

*ग्राम टिपरा में फसल अवशेष प्रबंधन पर एक दिवसीय किसान प्रशिक्षण का किया गया आयोजन*

For Detailed

पंचकूला, 30 सितंबर- कृषि विज्ञान केंद्र, पंचकूला द्वारा पिंजौर ब्लॉक के गांव टिपरा में फसल अवशेष प्रबंधन पर एक दिवसीय किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन केंद्र की वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख डॉ. श्रीदेवी तलपारगड़ा के मार्गदर्शन में हुआ। इस प्रशिक्षण में 25 किसानों ने भाग लिया, जिन्होंने फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान और प्रबंधन के प्रभावी तरीकों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की।  

 प्रशिक्षण सत्र के दौरान प्रमुख वक्ता कृषि अर्थशास्त्री डॉ. गुरनाम सिंह ने किसानों को बताया कि फसल अवशेष जलाना एक प्रचलित परंपरा बन गई है, लेकिन इसका दीर्घकालिक आर्थिक नुकसान किसानों को भुगतना पड़ता है। उन्होंने बताया कि जलाने से न केवल फसल अवशेष बर्बाद होते हैं, बल्कि खेत की मिट्टी की उर्वरता भी कम होती है, जिससे भविष्य की फसल उत्पादकता प्रभावित होती है। इस प्रक्रिया से मिट्टी में मौजूद जैविक पदार्थ भी जलकर समाप्त हो जाते हैं, जिससे किसानों की लागत बढ़ती है और मुनाफा कम होता है। 

 कृषि वैज्ञानिक डॉ. वंदना खंडेलवाल ने फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की संरचना पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव और पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। इसके परिणामस्वरूप, मिट्टी की जैविक गुणवत्ता में कमी आती है, जिससे किसानों को लंबे समय में फसलों के लिए अधिक रासायनिक उर्वरकों और जल की आवश्यकता होती है। उन्होंने किसानों को जैविक खाद और कंपोस्ट बनाने जैसी तकनीकों के बारे में बताया, जिससे न केवल मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ावा मिलता है, बल्कि फसल उत्पादन में भी सुधार होता है।  

*फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव और पोषक तत्व हो जाते हैं नष्ट-कृषि वैज्ञानिक*
*फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव और पोषक तत्व हो जाते हैं नष्ट-कृषि वैज्ञानिक*

 डॉ. खंडेलवाल ने किसानों को यह भी बताया कि फसल अवशेष जलाने से खेतों की जल धारण क्षमता में गिरावट आती है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता बढ़ जाती है और अतिरिक्त खर्चे भी बढ़ते हैं। यह किसानों की उत्पादन लागत में वृद्धि का कारण बनता है, जिससे उनके मुनाफे में कमी होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि किसान फसल अवशेष जलाने की बजाय इसे खेत में ही जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करें, तो इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होगा और फसलों की उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी।

 डॉ. सरोज देवी ने स्वास्थ्य और पर्यावरण पर फसल अवशेष जलाने के खतरनाक प्रभावों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि इससे वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि होती है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां पहले से ही स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित होती हैं, यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है। फसल अवशेष जलाने से सांस संबंधी बीमारियां, जैसे दमा और फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, पर्यावरणीय प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि जलने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्याएं बढ़ती हैं।  

कार्यक्रम में ब्लॉक कृषि अधिकारी (बीएओ) डॉ. कृष्ण कुमार ने भी विशेष रूप से हिस्सा लिया और किसानों को प्रोत्साहित किया कि वे फसल अवशेष जलाने से बचें और इसके बजाय इसके पुनउपयोग और प्रबंधन के वैकल्पिक तरीकों को अपनाएं। इस कार्यक्रम के अंत में, किसानों ने विशेषज्ञों से सवाल-जवाब किए और फसल अवशेष प्रबंधन के विभिन्न तरीकों के बारे में गहन चर्चा की।

https://propertyliquid.com