बंबई हाई कोर्ट : तलाक के बाद अगर महिला चाहे तो पति के नाम के बिना प्रमाणपत्र ले सकती है

बम्बई हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि अगर कोई महिला अपने अतीत को भूल जाना चाहती है तो शिक्षण संस्थान को इस बारे में महिलाओं का सहयोग करना होगा।
जलगांव की एक 31 वर्षीय महिला डॉक्टर अपने पति से तलाक के बाद डिप्लोमा सर्टिफिकेट से नाम बदलने के लिए पिछले साल एक याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति दामा शेषाद्रि नायडू की खंडपीठ ने पिछले सप्ताह परेल की एक मेडिकल संस्थान को महिला के वैवाहिक नाम के बिना नया प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया, जिसमें महिला के पति का उपनाम था।
पीठ ने आगे कहा कि संस्थान को उसके वैवाहिक नाम के बिना प्रमाण पत्र जारी करने में कोई नुकसान नहीं हुआ क्योंकि याचिकाकर्ता ने पहले ही आधिकारिक राजपत्र में अपना नाम बदलने जैसी अन्य औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं।
महिला ने अपने वकील अभिजीत अशोक देसाई के माध्यम से याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि दिसंबर 2011 में जियांग्सू विश्वविद्यालय, चीन से एमबीबीएस पूरा करने के बाद, उन्होंने दिल्ली मेडिकल काउंसिल और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से प्रमाणपत्र प्राप्त किया था।
दोनों प्रमाणपत्रों में उनका विवाह पूर्व नाम था, जैसा कि शादी से पहले जारी किया गया था। जून 2013 में महिला की शादी मुम्बई के जलगांव में हुई थी।
पांच साल तक वैवाहिक बंधन में रहने के बाद जुलाई 2018 में आपसी सहमति से उनका तलाक हो गया था।
याचिका में आगे कहा गया है कि शादी करने के बाद महिला ने अपने पति का नाम और उपनाम जोड़ने के लिए महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल मुंबई में आवेदन किया था।
मार्च 2017 में महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल ने प्रमाणपत्र जारी किया था, जिसमें महिला के पति का नाम और उनके उपनाम के साथ नाम दर्शाया गया था।
याचिका में कहा गया है कि शादी के बाद उन्होंने मुम्बई के परेल में एक संस्थान से डरमैटोलॉजी और वेनेरोलॉजी में डिप्लोमा पूरा किया।
जुलाई 2018 में संस्थान ने उन्हें डिप्लोमा प्रमाण पत्र से सम्मानित किया जो उनके पति और उपनाम के साथ उनके नाम को दर्शाता है।
महिला ने अपनी याचिका में कहा कि मेडिकल काउंसिल द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र में विवाह पूर्व और विवाह के बाद के दोनों नाम थे फिर भी संस्थान द्वारा जारी किए गए डिप्लोमा में केवल विवाह के बाद का नाम है। जिसे वह हटवाना चाहती थी।