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इनेलो विधायक रणबीर गंगवा गुरुवार को भाजपा में शामिल हो गए

चंडीगढ़:

हिसार जिले के नलवा विधानसभा क्षेत्र से इनेलो विधायक ‘रणबीर गंगवा’ गुरुवार को भाजपा में शामिल हो गए हैं।

भाजपा मुख्यालय में मुख्यमंत्री मनोहर लाल, प्रदेश प्रभारी डॉ. अनिल जैन, लोकसभा सहप्रभारी विश्वास सारंग, प्रदेशाध्यक्ष अध्यक्ष सुभाष बराला की मौजूदगी में गंगवा ने भाजपा दामन थामा।

रणबीर गंगवा प्रजापति समुदाय के प्रदेश में सबसे दिग्गज नेता हैं। प्रजापति समुदाय के साथ उनकी ओबीसी वर्ग में भी अच्छी खासी पैठ है।

उन्हें प्रदेश में पिछड़ा वर्ग के नेता के रूप में भी देखा जाता है। रणबीर वर्ष 2014 में इनेलो की टिकट पर नलवा से विधायक बने थे। 

बता दें कि नलवा विधनासभा 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर पश्चिमी हिसार का हिस्सा, आदमपुर के कुछ गांव व हांसी हलके कुछ गांव आते हैं।

भजनलाल परिवार का घर इसी विधानसभा क्षेत्र में आता है। वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में भजनलाल की पत्नी जसमा देवी कांग्रेस के संपत सिंह से चुनाव हार गई थी, जबकि 1987 में जस्मा देवी आदमपुर से विधायक रह चुकी हैं।

वर्ष 2014 में रणबीर सिंह गंगवा पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन को हराकर विधायक बने थे। 2009 के चुनाव में जस्मा देवी की हार दरअसल भजनलाल परिवार के किसी सदस्य की पहली हार है। 

नलवा से 2009 और 2014 दोनों चुनाव में अपनी पार्टी के राज्यसभा सदस्य रणबीर सिंह गंगवा पर दांव लगाते हुए टिकट दी थी।

2010 में राज्यसभा सदस्य बने रणबीर गंगवा ने विधानसभा में चुनाव लड़ने के लिए संसद से इस्तीफा दे दिया था।

पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक गलियारों में रणबीर सिंह गंगवा प्रजापति के इनेलो छोड़कर चले जाने की चर्चाएं चली हुई थी।

पिछले लंबे अर्से से प्रजापति समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले रणबीर गंगवा को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि वे भाजपा की तरफ जा सकते हैं, क्योंकि जींद उपचुनाव से एक मैसेज साफ दिख रहा है कि हरियाणा का ओबीसी और एससी समाज कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया है, जिसे कांग्रेस का कोर वोटर कहा जाता था।

उसने अपनी आस्था भाजपा में दिखानी जतानी शुरू कर दी है। वैसे भी कांग्रेस के पास फिलहाल ओबीसी और एससी समाज का प्रतिनिधित्व देने वाला एक भी जमीनी नेता नहीं है, जिसकी कीमत कांग्रेस लंबे समय तक चुकाएगी।

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बिना किसी दबाव व प्रलोभन के अपने मत का प्रयोग करें – डॉ. सुभीता ढाका

फतेहाबाद:

अतिरिक्त उपायुक्त डॉ. सुभीता ढाका ने कहा है कि स्वस्थ लोकतंत्र का यही उद्देश्य है कि नागरिक बिना किसी दबाव व प्रलोभन के अपने मत का प्रयोग कर जनप्रतिनिधि को चुनें।

नागरिकों को अपने बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है कि वे लोकतंत्र के पर्व में भाग लें और अपने मताधिकार का प्रयोग करें। अतिरिक्त उपायुक्त बुधवार को पटवार भवन में फतेहाबाद खंड के पंच-सरपंचों के चुनाव संबंधी प्रशिक्षण शिविर को संबोधित कर रही थीं।

प्रशिक्षण शिविर में मास्टर ट्रेनरों ने ईवीएम, वीवीपैट की जानकारी दी।

डॉ. सुभीता ढाका ने कहा कि सरपंच गांव का मुखिया होता है। सरपंच की यह नैतिक जिम्मेवारी भी बनती है कि गांव के सभी व्यक्तियों को स्वतंत्र और आजादी का माहौल मिले।

चुनावी समय में किसी भी नागरिक पर कोई भी व्यक्ति अनावश्यक रूप से दबाव न बनाए। अगर इस प्रकार की कोई सूचना सरपंच को मिलती है तो वे इसकी जानकारी प्रशासन को तुरंत दे।

उन्होंने कहा कि लोगों को अधिक से अधिक मतदान करने के लिए जिला प्रशासन द्वारा एक अभियान चलाया गया है। लोगों को उनके मताधिकारों बारे जागरूक किया जा रहा है और साथ ही ईवीएम और वीवीपैट की भी जानकारी दी जा रही है।

सरपंच भी खुद जागरूक हो और अन्य ग्रामीणों को भी इस बारे ज्यादा से ज्यादा अवगत करवाए। ग्राम सचिवालय में ईवीएम और वीवीपैट के क्रियाकलापों का बैनर भी लगवाए ताकि वहां पर आने वाले लोग वीवीपैट व ईवीएम से मतदान करने की जानकारी प्राप्त कर सके।

अतिरिक्त उपायुक्त ने कहा कि चुनाव संबंधी किसी भी प्रकार की जानकारी लेने के लिए टोल फ्री नंबर 1950 को डायल कर सकते हैं। इस अवसर पर डीडीपीओ अनुभव मेहता, एसईपीओ पृथ्वी सिंह, मास्टर ट्रैनर जयभगवान भोरिया मौजूद थे।

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650 करोड़ की लागत से बनाया गया कल्पना चावला मैडिकल कॉलेज,जहां थैलेसीमिया और हिमोफिलिया के मारीजों के लिए ईलाज की कोई उचित व्यवस्था नहीं

करनाल:

 करनाल में सामान्य अस्पताल के साथ-साथ 650 करोड़ की लागत से बनाया गया कल्पना चावला मैडिकल कॉलेज, जहां बेहतर इलाज के बड़े-बड़े दावे किए जाते है।

लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि मैडिकल कॉलेज व सामान्य अस्पताल में थैलेसीमिया और हिमोफिलिया के मारीजों के लिए ईलाज की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

ईलाज के नाम पर इन मरीजों को रक्त को चढ़ा दिया जाता है, लेकिन मरीजों के लिए आवश्यक जांच और दवा की कोई भी व्यावस्था नहीं है।

इन मरीजों को जांच के लिए या तो शहर से दूर जाना पडता है या फिर निजी अस्पतालों में भारी भरकम राशि अदा करनी पड़ती है। करनाल में इस समय 52 थैलेसीमिया और 32 हिमोफिलिया के मरीज है। 

जिन्हें आवश्यक जांच के लिए बाहर जाना पड़ता है। यह आनुवांशिक रोग जितना घातक है, इसके बारे में जागरूकता का उतना ही अभाव है। सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, परंतु थैलेसीमिया के कारण इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की हो जाती है।

इसका सीधा प्रभाव शरीर में स्थित हीमोग्लोबीन पर पड़ता है। हीमोग्लोबीन की मात्रा कम हो जाने से शरीर दुर्बल हो जाता है तथा अशक्त होकर हमेशा किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है।

थैलेसीमिया नामक बीमारी प्राय: आनुवांशिक होती है। इस बीमारी का मुख्य कारण रक्तदोष होता है। यह बीमारी बच्चों को अधिकतर ग्रसित करती है तथा उचित समय पर उपचार न होने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है।

इस बीमारी के शिकार बच्चों में रोग के लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में ही नजर आने लगते हैं। बच्चे की त्वचा और नाखूनों में पीलापन आने लगता है।

आँखें और जीभ भी पीली पडऩे लगती हैं। उसके ऊपरी जबड़े में दोष आ जाता है। उन्होने बताया कि इस बाबत वह हरियाणा के मुख्यमंत्री को भी पत्र लिख चुके है और संबंधित विभागों के साथ पत्राचार भी किया।

लेकिन ऐसे मरीजों के लिए अभी तक कोई भी ठोस निर्णय नहीं लिया गया है।इस बारे में मैडिकल कॉलेज के निदेशक डा. सुरेन्द्र कश्यप ने बुधवार को कहा कि कॉलेज में ऐसे मरीजों के लिए कोई विशेष यूनिट नहीं है।

उन्होने बताया कि जिले में 52 थैलेसीमिया के मरीज है। दिन में कभी एक तो कभी दो मरीज आते है। ऐसे में अलग से वार्ड बनाना संभव नहीं है। कॉलेज प्रशासन के पास जो सुविधा है, वह इन मरीजों को दी जा रही है।

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जम्मू-कश्मीर में तीन जगहों पर सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़

जम्मू-कश्मीर में तीन जगहों पर सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ जारी है।

शोपियां में सुरक्षा बलों ने आतंकियों को घेर रखा है, जबकि सोपोर में आतंकियों ने सीआरपीएफ कैंप पर ग्रेनेड से हमला किया है, वहीं बांदीपुरा के हाजिन में भी सुरक्षा बलों ने तलाशी अभियान शुरू किया है।

जम्मू कश्मीर के बारामुला जिले के सोपेर में गुरुवार को आतंकवादियों द्वारा किए गए ग्रेनेड हमले में एक अधिकारी सहित दो पुलिसकर्मी घायल हो गए।

पुलिस अधिकारी ने बताया कि उत्तरी कश्मीर जिले में सोपोर के मुख्य चौक पर आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों पर एक ग्रेनेड फेंका।

उन्होंने बताया कि विस्फोट में डांगीवाचा थाना के प्रभारी सहित दो पुलिसकर्मी मामूली रूप से घायल हो गए। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा बलों ने हमलावरों को पकड़ने के लिए इलाके की घेराबंदी की है और तलाशी अभियान शुरू किया है।

जबकि जम्मू-कश्मीर में शोपियां के वारपोर में दो आतंकियों के छिपे होने की सूचना के बाद सुरक्षा बलों ने तलाशी अभियान चलाया।

जिसके बाद अपने को घिरा देख आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। इस कार्रवाई में सेना की 22 राष्ट्रीय रायफल, जम्मू और कश्मीर पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के साथ सीआरपीएफ भी शामिल है। 

ऑपरेशन के दौरान व्यवधान से बचने के लिए शोपियां में इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया है। इससे पहले बुधवार को भी सुरक्षाबलों ने आतंकियों की मौजूदगी के इनपुट मिलने पर शोपियां और बारामुला में कासो चलाया था।

 बुधवार दोपहर को सुरक्षा एजेंसी को शोपियां और बारामुला में आतंकियों के मौजूद होने की सूचना मिली थी। 

इस दौरान सुरक्षा बलों पर फायरिंग की गई, जिसकी जवाबी कार्रवाई भी की गई। सुरक्षा बलों ने इसके बाद पूरे इलाके को घेर लिया था। लेकिन, तब आतंकी बच कर निकल गए थे। 

सूत्रों की मानें तो आतंकी बारामुला कंडी के कलंतरा इलाके में छुपे हुए हैं। जिसे लेकर कल से सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट थीं।

वहीं आज बांदीपोरा के हाजिन के मीर मोहल्ला में संयुक्त बलों द्वारा आतंकवादी होने की सूचना मिली, जिसके बाद सुरक्षा बलों ने इलाके को घेर लिया और तलाशी अभियान चलाया।



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Google ने होली के त्यौहार पर एक रंगीन डूडल बनाकर किया समर्पित

Google का डूडल

21 मार्च को Google ने होली के त्यौहार को एक रंगीन डूडल के रूप में चिह्नित किया है जो त्यौहार की उज्ज्वल और मज़ेदार भावना को दर्शाता है।

Google में भव्य कलाकृतियों के साथ-साथ होली के महत्व को बताते हुए एक कला और संस्कृति भी प्रदर्शित है।

होली, जिसे “रंगों का त्योहार” भी कहा जाता है, एक हिंदू त्योहार है जो वसंत के आगमन और सर्दियों के अंत का प्रतीक है।

भारत और नेपाल दो ऐसे देश हैं जो हर साल श्रद्धापूर्वक होली मनाते हैं। हालांकि, पूरे विश्व में भारतीय प्रवासी की उपस्थिति ने इसे एशिया और पश्चिम में मनाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय भारतीय त्योहारों में से एक बना दिया है।

हिंदू कैलेंडर में ‘फाल्गुन’ महीने की पूर्णिमा पर – होली पूर्णिमा की रात को आती है।

परंपरागत रूप से, होली के लिए उत्सव मनाया जाता है – 20 और 21 मार्च को इस वर्ष – हिंदुओं द्वारा। पहले दिन समारोह लोगों के साथ उनके समुदाय या पिछवाड़े में बड़े अलाव जलाते हैं, और कच्चे नारियल और मकई का प्रसाद बनाते हैं।

दूसरे दिन, लोग रंगों, पिचकारियों, पानी की बंदूकें और पानी के गुब्बारे के साथ खेलते हैं।

21 march Holi

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होली का पर्व फूलों और रंगों का त्योहार

रंग हमारी भावनाओं को दर्शाते हैं। रंगों के माध्यम से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित होता है। यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में होली का पर्व फूलों, रंग और गुलाल के साथ खेलकर मनाया जाता है।

रंगों का पर्व होली एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्यौहार है।

बल्कि यह पर्यावरण से लेकर आपकी सेहत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। 

सनातन (हिंदू) धर्म में प्रत्येक मास की पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है और यह किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है।

उत्सव के इसी क्रम में होली, वसंतोत्सव के रूप में फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।

फाल्गुन पूर्णिमा, हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम दिन होता है। इससे आठ दिन पूर्व होलाष्टक आरंभ हो जाते हैं।

अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक के समय में कोई शुभ कार्य या नया कार्य आरंभ करना शास्त्रों के अनुसार वर्जित माना गया है।

होली शब्द का संबंध होलिका दहन से भी है अर्थात पिछले वर्ष की गल्तियां एवं वैर-भाव को भुलाकर इस दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर, गले मिलकर रिश्तों को नए सिरे से आरंभ किया जाए। इस प्रकार होली भाईचारे, आपसी प्रेम एवं सद्भावना का पर्व है। 

होली, भारतीय समाज में लोकजनों की भावनाओं को अभिव्यक्त करने का आईना है। परिवार को समाज से जोड़ने के लिए होली जैसे पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार होली उत्तर प्रदेश के ब्रजमंडल में ‘लट्ठमार होली’ के रूप में, असम में ‘फगवाह’ या ‘देओल’, बंगाल में ‘ढोल पूर्णिमा’ और नेपाल देश में ‘फागु’ नामों से लोकप्रिय है।

मुगल साम्राज्य के समय में होली की तैयारियां कई दिन पहले ही प्रारंभ हो जाती थीं। मुगलों के द्वारा होली खेलने के प्रमाण कई ऐतिहासिक पुस्तकों में मिलते हैं। सम्राट अकबर, हुमायूं, जहांगीर, शाहजहां और बहादुरशाह जफर ऐसे बादशाह थे, जिनके समय में होली उल्लास से खेली जाती थी।

कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि रंगों से खेलने से स्वास्थ्य पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि रंग हमारे शरीर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर कई तरीके से असर डालते हैं। पश्चिमी फीजिशियन और डॉक्टरों का मानना है कि एक स्वस्थ शरीर के लिए रंगों का महत्वपूर्ण स्थान है।

होली यह संदेश लेकर आती है कि जीवन में आनंद, प्रेम, संतोष एवं दिव्यता होनी चाहिए। जब मनुष्य इन सबका अनुभव करता है, तो उसके अंतःकरण में उत्सव का भाव पैदा होता है, जिससे जीवन स्वाभाविक रूप से रंगमय हो जाता हैं। रंगों का पर्व यह भी सिखाता है कि काम, क्रोध, मद, मोह  एवं लोभ रूपी दोषों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए। 

रंग हमारी भावनाओं को दर्शाते हैं। रंगों के माध्यम से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित होता है। यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में होली का पर्व फूलों, रंग और गुलाल के साथ खेलकर मनाया जाता है।