एकेडमिक-एडमिनिस्ट्रेशन इंटरफेस कार्यक्रम में प्राध्यापकों से चर्चा करते हुए
सिरसा,18 सितंबर।
एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना हमारा उद्देश्य होना चाहिए और युवा पीढी को जागृत एवं शिक्षित करके समाज हित के विभिन्न कार्यों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके राष्टï्र का सही मायनों में विकास किया जा सकता है। ये विचार चौ. देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा के सीवी रमन सेमिनार भवन में एकेडमिक-एडमिनिस्ट्रेशन इंटरफेस कार्यक्रम के दौरान उभर कर सामने आए।
इस कार्यक्रम में उपायुक्त अशोक कुमार गर्ग ने बतौर मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों के साथ रुबरु होते हुए कहा कि राष्टï्र के उत्थान में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है और यदि शिक्षक विद्यार्थियों की रुचि अनुसार उनका करियर चुनने में मार्गदर्शन करते हैं तो विद्यार्थी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में तो कामयाब होते हैं ही साथ ही साथ रुचि अनुसार करियर का चयन होने पर वे तन्मयता के साथ कार्य करते हैं और उनके अंदर पसंदिदा काम मिलने की वजह से नित नई ऊर्जा का संचार होता है और सृजनात्मक कार्य करते हुए वे जीवन में आगे बढते हैं।
उन्होंने कहा कि समाज के अंदर बदलाव लाने का कार्य शैक्षणिक संस्थान ही करते हैं और प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन में अध्यापक का विशेष योगदान होता है। प्राध्यापकों का अनुकरण विद्यार्थी करते हैं और एक अच्छे प्राध्यापक की बात व विचारधारा को तवज्जो विद्यार्थियों द्वारा दी जाती है। इसीलिए अध्यापक को राष्टï्र निर्माता की संज्ञा भी दी जाती है। उन्होंने कहा कि मैं आज जो कुछ भी हूं अपने प्राध्यापकों की बदौलत हूं। शैक्षणिक संस्थानों से विकास की योजनाओं का ब्लू प्रिंट तैयार होता है और प्रशासन व सरकार को उचित प्रतिपुष्टिï मिलती है। उपायुक्त ने कहा कि आज भी ग्रामीण भारत के अंदर अनेक प्रकार की सामाजिक कुरीतियों विद्यमान है और इन कुरीतियों को प्राध्यापक व प्रशासनिक अधिकारी मिलकर खत्म कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि बतौर प्रशासनिक अधिकारी जब भी वे गांवों का दौरा करते हैं तो पर्दा प्रथा, भू्रण हत्या, नशा उन्मुलन आदि कुरीतियों को खत्म करने के लिए लोगों को जागरुक करते हैं और आज विश्वविद्यालय में आने का उद्देश्य यही है कि विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को भी इस मुहिम से जोड़ा जाए ताकि वे अपने विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ समाज हित के कार्यों के लिए प्रेरित करें और युवा शक्ति सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए जागरुकता अभियान में बढचढकर भाग लें।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजय कुमार कायत ने अपने अध्यक्षीय भाषण में भारतीय शिक्षा पद्दति के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा करते हुए कहा कि 80 के दशक के उपरांत उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में अनेक बदलाव आए और सूचना प्रौद्योगिकी व विज्ञान पर आधारित शिक्षा के क्षेत्र में शोध कार्यों का आगाज हुआ। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार मुहैया करवाना नहीं बल्कि विद्यार्थियों में मानवीय मूल्य विकसित करके एक आदर्श समाज की स्थापना करना है। गुरु व शिष्य के बीच अगर संबंध बेहतर होगा तो निश्चित रुप से युवाओं की शक्ति को सही दिशा व दशा मिलेगी। उन्होंने कहा कि तकनीक के आने की वजह से अध्यापन का कार्य भी गुणवत्तापरक तो हुआ है लेकिन यदि प्राध्यापक अपने आप को नवीनतम तकनीक की जानकारियों से लैस नहीं रखता तो वह बेहतर अध्यापन का कार्य नहीं कर सकता। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों के तीन महत्वपूर्ण कार्य बताए, पहला ज्ञान की खोज, दूसरा ज्ञान को बांटना तथा तीसरा ज्ञान का रख रखाव और कहा कि विश्वविद्यालय का प्रोफेसर अध्यापक होने के साथ-साथ एक अच्छा शोधकर्ता भी होता है।
इस अवसर पर जिला एवं सत्र न्यायधीश डा. आरएन भारती ने अपने वक्तव्य में कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को पढाई के साथ-साथ एक्सटेंशन एक्टिविटीज में भी बढचढकर भाग लेना चाहिए और समाज हित पर आधारित शोध गतिविधियां करने की सलाह प्राध्यापकों को दी। कोई भी शोध करने से पूर्व यह देखना चाहिए कि समाज को इसका क्या फायदा होगा, उद्योग जगत को इसका क्या फायदा होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में नागरिक को अनेक अधिकार प्रदान किए हैं, इन अधिकारों को वही व्यक्ति प्राप्त करने में सफल होता है जिसे संविधान में अंकित विभिन्न अधिकारों व कर्तव्यों की पूर्ण जानकारी होती है। जानकारी के अभाव में पढ़े लिखे लोग भी अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। इसलिए प्रत्येक पाठ्यक्रम में मानवाधिकार व विभिन्न प्रकार के कानून व धाराओं की जानकारी को भी शामिल करना चाहिए।
इस अवसर पर प्रोफेसर दीप्ति धर्माणी, प्रो. अन्नु शुक्ला, प्रो. पंकज शर्मा व डा. सत्यवान दलाल ने प्रशासनिक अधिकारियों से संवाद स्थापित करते हुए विभिन्न समाज हित व शिक्षा जगत के क्षेत्र में सुधारों पर चर्चा की। उपायुक्त व जिला एवं सत्र न्यायधीश का स्वागत शैक्षणिक मामलों के अधिष्ठïाता प्रो. राज कुमार सिवाच द्वारा किया गया।
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