सारी भाषाएं अपनी, सभी का भारतीय संस्कृति के संबर्द्धन में बड़ा योगदान-माधव कौशिक
साहित्य का सृजन वही करता है जो सोचता है और परिवर्तन लाने की इच्छा रखता है-पी के दास
मातृभाषा से ही नौनिहालों में त्वरित ज्ञान का संचार होगा न कि उधार की भाषा में-देव शंकर नवीन
साहित्य अकादमी भारत सरकार के सहयोग से तृतीय पंचकूला पुस्तक मेले के मंच पर इन्द्रधनुष आडिटोरियम के कान्फेंन्स हाल में ‘‘भारतीय भाषाओ में अन्तर्सम्बन्ध‘‘ विषय पर हुआ विमर्श
साहित्य अकादमी भारत सरकार के सहयोग से तृतीय पंचकूला पुस्तक मेले के मंच पर इन्द्रधनुष आडिटोरियम के कान्फेंन्स हाल में ‘‘भारतीय भाषाओ में अन्तर्सम्बन्ध‘‘ विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माधव कौशिक, अध्यक्ष साहित्य अकादमी भारत सरकार ने कहा कि सारी भाषायें ही हमारी हैं किसी न किसी रूप में भारतीय संबर्द्धन का माध्यम हैं। वर्तमान में आवश्यक है कि हम अपनी मातृभाषा के साथ-साथ दूसरी भाषााओं को भी सीखने का प्रयास करें जिससे हमारी सोच का दायरा बढ़े।
विमर्श के मार्गदर्शक पी के दास ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य का सृजन वही करता है जो सोचता है और परिवर्तन लाने की इच्छा रखता है। इस साहित्य को समझने के लिए पाठकों को भी अपनी तरफ से प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि साहित्य के क्षितिज के विस्तार के लिए आवश्यक है कि पाठक साहित्य से जुड़ने के लिए बाहरी परत को तोड़े।
अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार चन्द्र त्र्रिखा ने कहा कि हमारे लिये ये जानना आवश्यक है कि भाषायें ईट की तरह होती है आपके अच्छे विचार तभी एक अच्छे मकान का रूप लेंगे जब आपके पास शब्दरूपी ईटें होंगी।
अपने आधार वक्तब्य में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली से आये प्रोफेसर देव शंकर नवीन जी ने कहा कि अंग्रेजी भारत के अंदर औपनिवेशिक एवं सामराज्यवादी ताकतों का प्रतीक रही हैं।
संगोष्ठी में भाग लेते हुए प्रख्यात साहित्यकार दिनेश दधिचि ने कहा कि अगर दूसरी भाषाओं से कुछ नया सीखने का अवसर है तो हमें उसे खोना नहीं चाहिए परन्तु हमें अपनी भाषा को अधिक महत्व देना चाहिए।
विमर्श में भूपिन्द्र अजीज परिहार ने भाषाएं सोच का अक्स होती हैं और एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं।
इस अवसर पर अंकित नरवाल, डा. महासिंह पुनिया, मनमोहन, पंजाबी कवि, विशाल खुल्लर, सरबजीत सोहल, अश्वनी शाडिल्य, चन्द्रभान खयाल ने भारतीय भाषाओं में अन्तर्सम्बन्ध विषय पर विस्तार से चर्चा की।
विमर्श का संचालन करते हुए शम्स तबरेजी ने कहा कि सृजन हमेशा मादरी ज़बान में होता है, सपने कभी भी उधार की भाषा में नहीं आते।
विमर्श के सफल संयोजन में शिक्षा के भाषा विभाग के शिक्षकों की भारी समूह की विशेष भागीदारी रही।
इन्द्रधनुष आडिटोरियम के सभागार में सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रस्तुत हुआ उड़ीया नृत्य
संचारी फाउन्डेशन नृत्यांजलि क्रियेशन की ओर से उड़ीया नृत्य की प्रस्तुति की गई। विदुषी गुरू कविता द्विवेदी के तत्वाधान में एवं विदुषी गुरू पुष्पांजलि मोहंती के सहयोग से कार्यक्रम का संचालन किया गया। सर्वप्रथम प्रस्तुति उड़ीसी नृत्य के माध्यम से सूर्य अष्ठकम की हुई। दूसरी प्रस्तुति शिव पंचाक्षर की थी जहां भगवान शिव के स्वरूप एवं शक्ति का वर्णन है। तत्पश्चात उड़ीसा का लोकनृत्य की प्रस्तुति में जहां डाल खायी एवं रंगवती लोकनृत्य की प्रस्तुति संयोजित की गई।
निम्न कलाकारों की रही सक्रिय भूमिका
श्रीमती कविता द्विवेदी, संतोष मोहंती, श्रीमोई गंगोपाध्याय, नेहा भारद्वाज, राशि गुप्ता, आंकाक्षा महाराणा, जान्हवी गांधी, श्वेतलीना मोहन्ती।
कल इन्द्रधनुष सभागार में ‘यूथ डॉयलाग’ विषय पर पुलिस महानिदेशक हरियाणा श्री शत्रुजीत कपूर करंेगे युवाओं से संवाद
राष्ट्ीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के रंगकर्मियों का समूह करेगा प्रेमचंद की अमर कहानी चोरी एवं बड़े भाई साहब की नाट्य प्रस्तुति
विमर्श में प्रोफेसर शम्भूनाथ और डा. गुरमीत और डा. नरेश होगें साहित्य समाज से रूबरू।