Centre for Human Rights and Duties, PU commemorated National Legal Services Day

समृति ईरानी की महेनत रगं ला गई अमेठी का किला फतह किया,भाजपा की प्रचंड जीत

समृति ईरानी की महेनत रगं ला गई अमेठी का किला फतह किया,भाजपा की प्रचंड जीत

स्मृति ईरानी की सालों की मेहनत आखिर अमेठी में रंग लाई। इस बार उन्होंने वो कर दिखाया जिसके बारे में सिर्फ सोचा ही जा सकता था। इसे जमीन पर उतारना आसान कतई नहीं था। स्मृति ने गांधी परिवार की परंपरागत सीट पर जीत के कदम बढ़ा दिए हैं। ये इस चुनाव का सबसे बड़ा उलटफेर कहा जा सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष को हराना उन्हें भारत के सियासी इतिहास में दर्ज करवा देगा। 

नई दिल्ली
दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मीं स्मृति इरानी का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है। ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ टीवी सीरियल से घर-घर में पहचान बनाने वाली इरानी ने जब बीजेपी के जरिये सियासत में कदम रखा तो उस वक्त किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि वह एक दिन देश के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक परिवार के गढ़ में उनके बर्चस्व को तोड़ देंगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी में अपनी हार स्वीकर कर ली है और इरानी को जीत की बधाई भी दे दी है। इससे पहले 1977 में संजय गांधी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा था। 

2004 में पहले ही चुनाव में मिली हार
स्मृति 2003 में उस वक्त बीजेपी में शामिल हुईं, जब उनका ऐक्टिंग करियर उफान पर था। उसके अगले ही साल वह महाराष्ट्र यूथ विंग की उपाध्यक्ष बनाई गईं। 2004 में इरानी पहली बार चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उथरीं लेकिन उन्हें कांग्रेस के कपिल सिब्बल के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। 2010 में इरानी को बीजेपी महिला मोर्चा की कमान दी गई। 2011 में बीजेपी ने उन्हें राज्य सभा भेजा। अगले ही साल वह पार्टी की उपाध्यक्ष बनाई गईं। 

राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना रहा करियर में टर्निंग पॉइंट
इरानी के राजनीतिक करियर में टर्निंग पॉइंट तब आया, जब बीजेपी ने उन्हें 2014 में गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया। वह 1 लाख से ज्यादा वोटों से हार गईं, लेकिन चुनाव के दौरान उन्होंने जिस जुझारूपन का परिचय दिया, वह सबको प्रभावित किया। इसका उन्हें इनाम भी मिला। लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें न सिर्फ अपने कैबिनेट में जगह दी, बल्कि मानव संसाधन जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय से नवाजा। बाद में उन्हें कपड़ा मंत्रालय में भेजा गया। 

2014 में हार के बाद भी अमेठी से जोड़े रखा नाता
2014 में करीबी मुकाबले में हारने के बावजूद स्मृति ने अमेठी से अपना रिश्ता कायम रखा। वह लगातार नियमित अंतराल पर अमेठी का दौरा करती रहीं। स्मृति ने पिछले 5 सालों में खुद को राहुल गांधी के गंभीर प्रतिद्वंद्वी के तौर पर स्थापित किया। संसद से लेकर संसद से बाहर तक वह अहम मसलों पर राहुल गांधी को काउंटर करती रहीं और उन पर हमले का कोई मौका नहीं खोया। राहुल गांधी के अमेठी के अलावा केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने को इरानी और बीजेपी ने कांग्रेस अध्यक्ष का डर करार दिया था। 


स्मृति इरानी अपनी शैक्षिक योग्यता को लेकर विवादों में रहीं। उन पर आरोप लगा कि 2004 और 2014 के चुनावी हलफनामों में उन्होंने अपनी शैक्षिक योग्यता अलग-अलग बताई थीं। 2004 में इरानी ने अपने ऐफिडेविट में बताया था कि वह स्नातक हैं। हलफनामे के मुताबिक, उन्होंने 1996 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ करेस्पॉन्डेंस से बीए की डिग्री हासिल की। हालांकि, 2014 में उन्होंने अपने हलफनामे में बताया था कि उन्होंने 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकॉम पार्ट 1 का एग्जाम पास किया था और कोर्स पूरा नहीं कर पाई थीं। इसके अलावा स्मृति उस वक्त विवादों में आ गईं जब उन्होंने कहा कि उनके पास अमेरिका के मशहूर येल यूनिवर्सिटी की डिग्री है।

बहरहाल, अमेठी की हार राहुल के लिए कभी न भुलाने वाला सपना साबित हो सकता है। इस सीट से उनके पिता राजीव गांधी, संजय गांधी चुने जाते रहे हैं। अंत में पिता की विरासत को राहुल गांधी संभाल नहीं सके। बकौल राहुल, अब अमेठी स्मृति ईरानी के हवाले हो गया है। वह राहुल गांधी की जगह लेंगी। उम्मीद है कि अमेठी की जनता को अब वह सब मिलेगा जिसका उन्होंने वादा किया है। 

इस जीत के साथ ही नए कैबिनेट में उनका कद बढ़ना तय हो गया है। उन्होंने उस नेता को हराया है जो हालिया समय में भाजपा और मोदी-शाह पर सबसे बड़ा हमलावर रहा है। ऐसे में अगर स्मृति को एक बड़ा मंत्रालय दे दिया जाए तो हैरत किसी को नहीं होनी चाहिए। 

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply