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महावीर जयंती पर विशेष

महावीर जयंती पर विशेष

सत्य, समता और सरलता से भी मोक्ष पाया जा सकता है

कालांवाली, 5 अप्रैल। गरीबों के मसीहा गुरुदेव श्री प्रेम सुख महाराज के लघुशिष्य पंडित रत्न शास्त्री श्री उपेंंद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि ज्ञान, दर्शन चारित्र, तप तथा दानशीलतप और भावना मोक्ष में जाने के उपाय है कि लेकिन सत्य, समता और सरलता से भी मोक्ष पाया जा सकता है। यह उपाय स्वयं भगवान महावीर स्वामी द्वारा बतलाए गए हैं। गुरुदेव श्री उपेंद्र मुनि जी ठाणा-7 स्थानीय एसएस जैन सभा में विराजमान हैं। लॉकडाउन के कारण कल मनाई जाने वाली महावीर जयंती को उन्होंने अपने अपने घरों में ही मनाने को कहा और  कल सुबह 9 बजे से 10 बजे तक सामूहिक जाप करने का कर आह्वान किया।

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गुरुेदव श्री ने कहा कि भगवान महावीर ने फरमाया है कि सत्य स्वयं भगवान है। सत्य के बराबर कोई तप नहीं होता तो सत्य के बराबर कोई भगवान भी नहीं होता है। इस विध्वंसशील संसार में सत्य ही सारभूत वस्तु है। निश्चयकारी भाषा में कहा तो सत्य के समान कोई दूसरा भगवान नहीं हो सकता है। यह समूचा विश्व सत्य पर ही टिका हुआ है। सूर्य, चंद्रमा, ग्रह नक्षत्र और सितारे सब सत्य की परिकृमा में ही लगे हुए हैं जिसके ह्रदय में सत्य है वह स्वयं भगवान है।  दूसरे उपाय के बारे मे भगवान महावीर फरमाते हैं कि साधु को समूची अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं में पृथ्वी के समान सहनशील होकर ं कीरहना ाचाहिए। पृथ्वी की चाहे कोई पूजा उपासना करे, आरती उतारे, या फिर कुल्हाड़ों से काटे लेकिन पृथ्वी कभी अपना धैर्य  नहीं खोती। इसीलिए भगवान महावीर फरमाते हैं कि मुनि को पृथ्वी समान सहनशीन होना चाहिए। साधु की शोभा भी सहनशीलता से होती है, नारी की शोभा पतिव्रत धर्म से होती है, कुरुप व्यक्ति की शोभा उसके ज्ञान से होती है। महाराज जी ने कहा कि तीसरे उपाय सरलता के बारे में भगवान महावीर फरमाते हैं कि सरल ह्दय में ही भगवान का निवास होता है। जहां सरल व्यक्ति निष्कपट होता है वहीं सरल व्यक्ति को किसी से भी भय भीत होने की आवश्यकता नहीं होती। जब कपट ही नहीं होगा तो किसी की कटार से डरने की जरुरत नहीं होगी। सरल व्यक्ति सर्वत्र एक सरीखा रहता है और कपट करने वाले को बार बार कपट करना ही पड़ता है। जिस प्रकार घी से सींचने पर अग्रि निर्धूम हो जाती है और उससे कोई धुआं नहीं निकलता है इसी प्रकार सरल व्यक्ति के ह्रदय कभी कुत्सित विचारों की दुर्गंध नहीं उठती। सरल व्यक्ति के विचार गंगा की निर्मल धाराओं की तरह पवित्र हो जाते हैं। इसीलिए आत्म कल्याण के लिए सत्य, समता और सरलता को ही अपनाया जाता है। इनके अभाव में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और दानशीलता तप भावना आत्म कल्याण एंकात रूप से सक्षम नहीं है।

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